कविता

तेरा प्रतिबिंब

पाती तुम्हारे प्यार की
दिल में संजोए रखी है;
 ऋतुराज- सा चिरहरित
तुम्हारा  निर्मल प्यार
 तुम्हारे मीठे बोल
तुम्हारी आँखें
मधुर स्पर्श
ज्यों
दूब पर पड़ी ओस।
स्मृति के आईने में
देखता हूँ  नित
तेरा प्रतिबिंब
 सखी!
काश जीवन में होता सिर्फ
 बसंत
न होता पतझड़
बर्फ- सा निर्मम!
— निर्मल कुमार दे

निर्मल कुमार डे

जमशेदपुर झारखंड [email protected]