लेख

बनते और बिगड़ते रिस्ते

आधुनिकता! हजम कर रही आदर, संस्कार, दुनियां के साथ साथ बदल रहा सभी का स्वभाव

जहां एक ओर अपना भारत विश्वगुरू बनने की मैराथन में नजर आ रहा है! वहीं दूसरी ओर अपने देश के युवाओं का गुरू मोबाइल बन चुका है। वर्तमान समय में नयी पीढ़ी के द्वारा जितने भी कार्य किये जा रहें हैं सभी मोबाइल के दिशा निर्देशों के अनुसार ही सम्पन्न किये जा रहे हैं, और निरन्तर बढ़ रहे विवादों एवं पारिवारिक वादों में सबसे अहम भूमिका मोबाइल की ही प्रदर्षित हो रही है। आज के दौर में किसी भी व्यक्ति का हाथ मोबाइल से खाली नही है और यही मोबाइल अब लोगों के आस्था का केन्द्र भी बनता जा रहा है, ज्ञान और धर्म की बातों की गंगा मोबाइल पर इतनी तेजी से बह रही है मानों चारो धाम मोबाइल ही हो चुके हों, आज के युवा सबसे ज्यादा मोबाइल में टकटकी लगाये रहतें हैं इस टकटकी के दौरान यदि कोई अहम बात भी कह जाये तो उस पर कोई ध्यान नही दिया जा रहा है, हर व्यक्ति के प्रत्येक दिन का सबसे ज्यादा समय मोबाइल ही लेकर जा रहा है फिर लेकर जाये भी क्यों न क्योंकि वर्तमान समय में सभी कार्य मोबाइल से ही तो किये जा रहें चाहे पढ़ाई हो चाहे खारीददारी हो, चाहे रिस्तों को साधने की बात हो मोबाइल के माध्यम से हर व्यक्ति के पास सैकडों की मित्र मण्डली नजर आ रही है वहीं दूसरी ओर वास्तविक रिस्तों में दरार भी देखने को मिल रही है। ऑनलाईन के माध्यम से जहां लोगों के पास आज सैकड़ों प्रशंसक नजर आ रहे हैं वहीं दूसरी ओर देखा जाये तो अपने ही पडोसी से रिस्ते मधुर नही हैं।

वर्तमान समय की युवा पीढ़ी पूरी तरह से आधुनिकता पर ही निर्भर होती नजर आ रही है, इस आधुनिकता ने युवाओं के मन मस्तिष्क पर ऐसा प्रभाव डाला है मानो नील गगन में बदली छा गयी हो और बदली को देख कर मयूर नृत्य कर रहा हो, बिना यह सोंचे कि यदि मेंघ मूसलाधार बरस गये तो मेरा आशियाना और मेरी फसल का क्या होगा, बरसात होने से पहले जो हो सके जितना हो सके उसे संरक्षित कर लिया जाये परन्तु नही कुछ भी हो जाये परिस्थितियां अनुकूल हों या प्रतिकूल हों खुद के बुद्धि विवेक का इस्तेमाल न करने की कसम खा रखी है, दूरभाष से आधुनिक यंत्रों के माध्यम से मिले दिशा निर्देशों में आज की युवा पीढ़ी ज्यादा अमल करती नजर आ रही है। वास्तविकता व वर्तमान परिवेश को नजर अंदाज करके टेलीफोनिक सूचनाऐं व्यक्ति के मन मस्तिष्क पर इस ढंग से सवार हो चुकीं हैं कि अब लोगों का इसके बीना जीना दुष्वार हो चुका है, जहां इसके माध्यम से लोग दूर दराज के लोगों से नये – नये रिस्ते कायम कर रहे हैं वहीं दूसरी ओर नजदीक के रिस्ते बिगड़ते जा रहे हैं साथ में यह भी कहना अतिशियोक्त नही होगा कि टच तो सबके पास है लेकिन आज के दौर में कोई भी टच में नही है, मोबाइल का हिन्दी में अर्थ ही होता है चलने फिरने वाला फिर ठहरावा की बात तो सोंची भी नही जा सकती है! समाज के हर वर्ग के युवाओं की शादी आज कल तो बड़ी धूमधाम से होती है परन्तु कुछ ही दिनों के बाद शादी की खुशी एक कलह में बदलने लगती है, क्योंकि आज कल का हर युवक हर युवती मोबाइल के क्षेत्र में एक लम्बी चौडी डिग्री को लेकर घूम रहा है, भले ही हर घर के संस्कार अलग- अलग हों किन्तु मोबाइल के माध्यम से प्राप्त सूचनाओं के अनुसार अपने ढंग को बढ़ावा देना एवं अपने हावों भावों में ही निर्वहन किया जाना घर के बडे बुर्जुगों को रास नही आ रहा है रास न आने का सबसे बड़ा कारण यह भी होता है कि दुनियां की चकाचौंध को एक किनारे रख कर बडे बुर्जुगों के अंदर अभी कुछ मान मर्यादा जिन्दा है, इसलिये जब कोई हद पार करनें लगता है तब एक परिवार में अनेक तरह की बातें होना शुरू हो जाती हैं, वर्तमान समय में नवदाम्पति को लेकर समस्या बड़ी विकट नजर आ रही है अधिकांश नवदाम्पत्ति आपस में सामंजस्य स्थापित करनें में असफल नजर आ रहें, विवाह की डोर में बंध जाने के बाद कुछ दिन ही सब कुछ सामान्य रहता है, फिर सारा माहौल आसामान्य नजर आने लगता है।

सामान्य परिवार में जब कोई अपनी मनमानी करने पर उतारू हो जाता है तो परिवार के सदस्यों को अनेक प्रकार के मानसिक तनाव से गुजरना पड़ता है, फिर बात चाहे नये घर से आये हुये नये मेहमान की हो चाहे अपने ही पूराने घर के किसी इंसान की हो, आधुनिक यंत्र के माध्यम से अधिक संपर्क में एक घर की बाते जब दूसरे घर में आधुनिक यंत्रों के माध्यम से पहुंचने लगती है तो एक परिवार में तनावपूर्ण स्थित पैदा होना शुरू हो जाती है यदि दूसरे घर के लोग संस्कारी और सहनशील होते हैं तब तो वह जैसा देश वैसा भेष बनाने की सलाह देते हैं यदि वह लोग आधुनिक विचार धारा के होते हैं तोे आग में घी डालने का काम करने लगते हैं, फिर क्या! पठकथा कहीं और से लिखी जाती हैं और चरित्र चित्रण यहां पर होने लगता है, तमाम तरह की कहासुनी के बाद फिर सिलसिला आने जाने का शुरू हो जाता है फिर एक दिन ऐसा आ जाता है कि किसी का जाना तो होता है परन्तु आना नही होता है कुछ मामले तो आपस में सुलझा लिये जाते हैं तो कुछ मामलों में अदालतों पर मुलाकातों का सिलसिला शुरू होता है।

नये दौर की नयी पीढ़ी सब कुछ मोबाइल से ही सीखने का प्रयास करती नजर आ रही है चाहे वह शिक्षा हो, चाहे मनोरंज हो, चाहे कला हो, चाहे फैशन हो चाहे व्यंजन बनाने की कला हो इससे यही प्रतीत होता है कि ज्ञान से ज्ञान बढ़ाने की प्रक्रिया खत्म हो चुकी है, कोई किसी को समुचित समय देना नही चाह रहा है सभी लोग नये ज्ञान की तलाश में अलग थलग व्यस्त रहतें है परिवार का कौन सा सदस्य मोबाइल यूनिर्वसिटी से कौन सी डिग्री हासिल कर रहा है इसकी समीक्षा करने का समय परिवार में किसी के पास नही है, और उसके मोबाइल में किस प्रकार के ज्ञान का भण्डार है इसे देखने और समझने की जरूरत किसी के पास नजर नही आ रही है, आधुनिक युग में मोबाइल सभी का मार्ग दर्शक बन चुका है चाहे वह परिवार में हो चाहे वह व्यापार में हो, स्कूल के पाठ से लेकर पूजा पाठ तक की जिम्मेदारी मोबाइल की ही होती नजर आ रही है, जब मोबाइल के साथ नेटवर्क का साथ हो तो मोबाइल के हौंसले और बुलंद हो जाते हैं यह मोबाइल कभी ऐसे चलचित्रों को परोसना शुरू कर देता है जो परिवार, संस्कार और समाज के लिये घातक है आज का युवा ऐसे बेहूदगी से लबालब चलचित्रों को पंसद भी ज्यादा करने लगा है और उसी प्रकार वास्तविक जीवन जीने की कोशिश भी करने लगा है जो किसी भी दृष्टिकोंण से सही नही है।

जहां आधुनिक यंत्रों के माध्यम से हमारी सूचना प्रौद्योगिकी मजबूत हुई है वहीं दूसरी ओर व्यक्ति के सामान्य स्वाभाव में भी बदलाव देखने को मिलने लगा है, सभी के पास चिड़चिड़ापन सिर दर्द, मानसिक तनाव जैसी तमाम समस्याओं से आज का व्यक्ति घिरा नजर आ रहा है, और इस समस्या से उबरने के बजाय वह दिन ब दिन और धंसता चला जा रहा है, बीमारी को मिटाने को जितना इलाज किया जा रहा बीमारी उतनी ही बढ़ती जा रही है। आज के दौर में इंसान परजीवी पौंधों की तरह दूसरों पर यानी नेटवर्क के विशाल वृक्ष पर फलता फूलता नजर आ रहा है आज जो कुछ भी दिखाई व सुनाई पड़ रहा है सब कुछ नेटवर्क की ही महिमा के कारण है जरा सोंचो! ब्रम्हांड में यदि कोई विपरीत परिस्थित उत्पन्न हुई और नेटवर्क का बृक्ष तेज झोंके से कहीं टूट गया या उखड गया तो नेटवर्क का क्या होगा, फिर तो अफरातफरी, लोगों की बचैनी, परेशानी और बढ़ जायेगी सारे काम काज ढप्प हो जायेंगे, एक पल के लिये ऐसा लगेगा मानों पृथ्वी पर इंसानों की उत्तपत्ति आज ही हुयी हो और वह सब कुछ सीखने और बनानें का प्रयास कर रहा है। हम वैज्ञानिक क्षेत्र में कितना ही विकास क्यों न कर लें यह सभी संसाधन हमारे कार्यों के सहायक हो सकते है परन्तु इन संसाधनों के बीच अपनी परम्परा व अपने संस्कारों को नही भूलना चाहिए, क्योंकि दुनियां में समयानुसार हर दम कुछ न कुछ होता रहा है और भी आगे होता रहेगा किन्तु इन सभी के बीच पूरानी परम्पराओं और संस्कारों का होना भी बहुत जरूरी है जो आज कल एक दम लुप्त होने की कगार पर है, जैसे मोबाइल को पता है कि हम सिर्फ बात करने लिये बनाये गये हैं इसलिये जब आप कोई कार्य मोबाइल पर कर रहे हों और किसी का फोन आ जाये तो मोबाइल तुरन्त सारे कार्य रोक देता है और सीधे घनघनाना शुरू हो जाता है वैसे ही आज के हर युवा को सोचना चाहिए कि मोबाइल मेरे लिये मेरे लिए बना है मैं मोबाइल के लिये नहीं बना हूं।

राज कुमार तिवारी ‘‘राज’’
बाराबंकी उ0प्र0
8009766390

राज कुमार तिवारी 'राज'

हिंदी से स्नातक एवं शिक्षा शास्त्र से परास्नातक , कविता एवं लेख लिखने का शौख, लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र से लेकर कई पत्रिकाओं में स्थान प्राप्त कर तथा दूरदर्शन केंद्र लखनऊ से प्रकाशित पुस्तक दृष्टि सृष्टि में स्थान प्राप्त किया और अमर उजाला काव्य में भी सैकड़ों रचनाये पब्लिश की गयीं वर्तामन समय में जय विजय मासिक पत्रिका में सक्रियता के साथ साथ पंचायतीराज विभाग में कंप्यूटर आपरेटर के पदीय दायित्वों का निर्वहन किया जा रहा है निवास जनपद बाराबंकी उत्तर प्रदेश पिन २२५४१३ संपर्क सूत्र - 9984172782