गीत/नवगीत

“केवल यादें बची, परिन्दे किधर गये”

गीत “केवल यादें बची, परिन्दे किधर गये”

उजड़ गया वो बाग, माली गुजर गये।
केवल यादें बची, परिन्दे किधर गये।।

कहाँ गये वो लोग, जिन्होंने चमन सजाये,
कहाँ गये वो खेत, जहाँ पर पेड़ लगाये,
पुरखों के आधार, जाने किधर गये।
केवल यादें बची, परिन्दे किधर गये।।

रिश्तों में खो गया, सन्तुलन प्यार का,
सारहीन हो गया, सूत्र परिवार का,
खुशियों के अंबार, जाने किधर गये।
केवल यादें बची, परिन्दे किधर गये।।

खोज रही सन्तान, हाथ उपहार का,
युग आया है आज, सिर्फ मनुहार का,
तीज और त्यौहार, जाने किधर गये।
केवल यादें बची, परिन्दे किधर गये।।

नहीं रहा नैसर्गिक, ढाँचा प्यार का,
बिगड़ गया है ढंग, प्रणय-अभिसार का,
मर्य़ादा के तार, जाने किधर गये।
केवल यादें बची, परिन्दे किधर गये।।

मटियामेट किया किसने, पंचम अक्षर आकार का,
लुप्त हुआ अस्तित्व, चन्द्रबिन्दु जैसे अनुस्वार का
स्वर वीणा झंकार, न जाने किधर गये।
केवल यादें बची, परिन्दे किधर गये।।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

*डॉ. रूपचन्द शास्त्री 'मयंक'

एम.ए.(हिन्दी-संस्कृत)। सदस्य - अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग,उत्तराखंड सरकार, सन् 2005 से 2008 तक। सन् 1996 से 2004 तक लगातार उच्चारण पत्रिका का सम्पादन। 2011 में "सुख का सूरज", "धरा के रंग", "हँसता गाता बचपन" और "नन्हें सुमन" के नाम से मेरी चार पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। "सम्मान" पाने का तो सौभाग्य ही नहीं मिला। क्योंकि अब तक दूसरों को ही सम्मानित करने में संलग्न हूँ। सम्प्रति इस वर्ष मुझे हिन्दी साहित्य निकेतन परिकल्पना के द्वारा 2010 के श्रेष्ठ उत्सवी गीतकार के रूप में हिन्दी दिवस नई दिल्ली में उत्तराखण्ड के माननीय मुख्यमन्त्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक द्वारा सम्मानित किया गया है▬ सम्प्रति-अप्रैल 2016 में मेरी दोहावली की दो पुस्तकें "खिली रूप की धूप" और "कदम-कदम पर घास" भी प्रकाशित हुई हैं। -- मेरे बारे में अधिक जानकारी इस लिंक पर भी उपलब्ध है- http://taau.taau.in/2009/06/blog-post_04.html प्रति वर्ष 4 फरवरी को मेरा जन्म-दिन आता है