कविता

सांझ

ये सांझ  का मंजर मस्त नजारा
दौड़ धूप कर गुजरा दिन  सारा
सूरज अस्ताचल में लिया विश्राम
कितना मनोहर है ये हॅसीन शाम

रक्त सा लेहित गगन का है आलम
सफेद बादलों में छुपा है मेरी जानम
पक्षियों ने ली वापसी की अब उड़ान
कितना मनोहर है ये हँसीन     शाम

तारे आसमान पे करता है मुझे इशारा
नाम मोहब्बत में लेकर हमें है  पुकारा
चाँदनी खूबसूरत दिखा हाथ में ले जाम
कितना मनोहर है ये हँसीन       शाम

खेत खलिहान में जलता है अब दीया
पी पी पिहू पिहू गाती है डाली पे पपीहा
सब मित्र वर को मेरा है अब राम राम
कितना मनोहर है ये हँसीन         शाम

पर्वत पे बैठो आराम से कुछ बतियायें
तेरे गोद में सर रखकर सो।      जायें
तेरे लव अब गाती है गीत मेरे      नाम
कितना मनोहर है ये हँसीन        शाम

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088