ग़ज़ल
आपके शहर का अजीब मंजर होता है
यहाॅं तो हरेक हाथ में खंज़र होता है
कितनी भी करो कोशिश ये जुड़ता नहीं
जबकि ये पहिया हर बार पंचर होता है
बिन रिश्वत के होता नहीं कोई काम
बाबू अफसर का ऐसा दफ्तर होता है
ढूंढ़ने पर मिला नहीं एक ही इंसान यहाॅं
कैसा अजीब आपका ये शहर होता है
क़ानून का रहा नहीं खौफ़ उन पर रमेश
इसीलिए कुछेक के हाथ पत्थर होता है