दम निकलता है , हम दम क्या करें,
जब से परी शब वो हूर को देखा है,
दम निकलता है ,दम निकलता है ।
अब इस हवाओ में नमी कम सी है,
अश्क-ए-ख़ूँ आंखों से निकलता है,
दम निकलता है ,दम निकलता है ।
बहोत ही देर की मेहरबां आते आते,
मेरे ज़ख्मों से देखो सम निकलता है,
दम निकलता है ,दम निकलता है ।
फिर दिल लरज़ता है मिरे सीने में ,
हश्र का जिस पर दम निकलता है,
दम निकलता है ,दम निकलता है ।
कभी कभी फ़रियादतन सुन लो मुझे,
हर्फ़ का होंटों पे आते दम निकलता है
दम निकलता है ,दम निकलता है ।
— बिजल जगड
शब – रात
अश्क-ए-ख़ूँ – खून के आंसू
सम – सुर
लरज़ता – घबराहट
हश्र – प्रलय , हालत
फ़रियादतन – फरियाद
हर्फ़ – बात, बोल