कविता

खिलने पर इतराओ न

खिलने पर इतराओ न, तुम ही तोड़े जाओगे
सीने में नस्तर रख कर, तुम ही जोड़े जाओगे

खुशबू काबू में रखना, आफ़त में जान को डालेगी
जिस दिन जश्न कोई होगा, उस दिन तोड़े जाओगे

हम कांटो को खिलने औ, मुरझाने का है गम नही
सदा बहारें रहती मुझमें, तुम पग में छोंड़ें जाओगे

हर कोई तुमको रौंदेगा, हर कोई तुमसे खेलेगा
अपनी आभा के कारण, स्वागत में छोंड़ें जाओगे

हम डाली के शूल हैं ऐसे, जो फूल बहुत से देखे हैं
सर कलम रोज सबका होता, गर्दन से मोड़ें जाओगे

जब तक खिले खिले रहते , तब तक तेरी ज़ीनत है
जिस दिन से मुर्झाओगे, हर नजर से छोंड़ें जाओगे

खिलने वाली जीत जो तेरी, यही ज़िक का कारण है
गले से लेकर गालियों तक, तुम ही छोंड़ें जाओगे

राजकुमार तिवारी ‘राज’
बाराबंकी उत्तर प्रदेश

राज कुमार तिवारी 'राज'

हिंदी से स्नातक एवं शिक्षा शास्त्र से परास्नातक , कविता एवं लेख लिखने का शौख, लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र से लेकर कई पत्रिकाओं में स्थान प्राप्त कर तथा दूरदर्शन केंद्र लखनऊ से प्रकाशित पुस्तक दृष्टि सृष्टि में स्थान प्राप्त किया और अमर उजाला काव्य में भी सैकड़ों रचनाये पब्लिश की गयीं वर्तामन समय में जय विजय मासिक पत्रिका में सक्रियता के साथ साथ पंचायतीराज विभाग में कंप्यूटर आपरेटर के पदीय दायित्वों का निर्वहन किया जा रहा है निवास जनपद बाराबंकी उत्तर प्रदेश पिन २२५४१३ संपर्क सूत्र - 9984172782