खिलने पर इतराओ न
खिलने पर इतराओ न, तुम ही तोड़े जाओगे
सीने में नस्तर रख कर, तुम ही जोड़े जाओगे
खुशबू काबू में रखना, आफ़त में जान को डालेगी
जिस दिन जश्न कोई होगा, उस दिन तोड़े जाओगे
हम कांटो को खिलने औ, मुरझाने का है गम नही
सदा बहारें रहती मुझमें, तुम पग में छोंड़ें जाओगे
हर कोई तुमको रौंदेगा, हर कोई तुमसे खेलेगा
अपनी आभा के कारण, स्वागत में छोंड़ें जाओगे
हम डाली के शूल हैं ऐसे, जो फूल बहुत से देखे हैं
सर कलम रोज सबका होता, गर्दन से मोड़ें जाओगे
जब तक खिले खिले रहते , तब तक तेरी ज़ीनत है
जिस दिन से मुर्झाओगे, हर नजर से छोंड़ें जाओगे
खिलने वाली जीत जो तेरी, यही ज़िक का कारण है
गले से लेकर गालियों तक, तुम ही छोंड़ें जाओगे
राजकुमार तिवारी ‘राज’
बाराबंकी उत्तर प्रदेश