ग़ज़ल
हाल-ए-दिल तुम्हें भी सुनाएंगे किसी रोज़,
रोएंगे और तुमको रूलाएंगे किसी रोज़
इज़हार हमें जज़्बों का आता तो नहीं पर,
तुम मेरे लिए क्या हो बताएंगे किसी रोज़
हर वक्त ये मौसम खिज़ां का रह नहीं सकता,
बहार के भी दिन तो आएंगे किसी रोज़
धोखा, फरेब, झूठ बिल्कुल ना हो जहां,
ऐसा नया जहान बसाएंगे किसी रोज़
दुनिया के रंज-ओ-गम से जो फुर्सत मिली हमें,
गज़ल कोई तुम पे बनाएंगे किसी रोज़
सीरत तो पहले थोड़ी अपनी अच्छी बना लें,
सूरत भी अपनी यारो सजाएंगे किसी रोज़
— भरत मल्होत्रा