गीतिका – गीत वही है गेय
गीत वही है गेय, जहाँ कोकिल की लय है।
नहीं शब्द का खेल,भाव नर्तन परिचय है।।
जाना मत उस ठौर,मान का पान न मिलता,
मुरझाता उर-बौर,क्षीण हो जाती वय है।
स्वयं चाहता मान, अहंकारी ये मानव,
करे न कौड़ी दान, दिखाता- सा अभिनय है।
वर्ण -भेद का रंग, बहुत जाना पहचाना,
सभी रहें जन -तंग,ध्येय मन में अक्षय है।
हृदय कपट -भंडार,नेह ममता से खाली,
झूठा लाड़ – दुलार, क्रूरता का संचय है।।
भूले छंद -विधान, ताल में टर – टर होती,
कवियों कीबारात,भेक की जय जय जय है।
‘शुभम्’ बिना ही स्वेद,पताका लहरे -फहरे,
गर्दभ गाते वेद,किसी को कुछ क्या भय है?
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम्’