कविता

पूरा हिसाब करता है संसार

बुरे काम का होता है बुरा नतीजा
आज मीठा है पर कल होगा तीता
सोंच विचार कर जग में     व्यापार
बराबर हिसाब चुकता करता संसार

जग को गर रूलाया है तुम भी रोयेगा
कर्म के अनुसार फल भी तुम पायेगा
मानवता से मत करना कभी र्दुव्यवहार
बराबर हिसाब चुकता करता   संसार

गुरूर अभिमान का बन्द कर ये दुकान
सत्य भूमि पर खड़ा कर अपना मकान
कुपथ मार्ग पर मत चल मेरे     सरकार
बराबर हिसाब चुकता करता   संसार

संचय किया है धन दौलत अगर बेईमानी
ढल जायेगी एक दिन धन की     जवानी
समाज में होगा उस दिन तुम     शर्मसार
बराबर हिसाब चुकता करता      संसार

किसी का ना चला है तेरा भी ना चलेगा
जमाने की आँसू तुम को भी      लगेगा
मत कर पड़ोसी से गलत कोई  सहचार
बराबर हिसाब चुकता करता    संसार

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088