गीत
अंतर्मन के भावों को जब
शब्दों का आकार दिया
भावों की नैया ने तब
भव सागर ही पार किया
अंतर्मन में जलती ज्वाला
बनी क्रांति का फिर इक नारा
मरुभूमि सा था ये जीवन
कभी बनी यह जल की धारा
भूले बिसरे थे जो भी पल
हर पल को जब याद किया
अपने शब्दों की गाथा में
हर पल की फ़रियाद सुनी
गीत बनाकर बीते पलों की
खट्टी मीठी याद सुनी
सुख दुख जीवन के दो पलड़े
दोनों को समभार दिया
पंख लगाकर उड़ आऊं में
दूर गगन में भावों से
फूंकू प्राण कलम से अपनी
अपने शब्द प्रभावों से
दिल की हर धड़कन से अपनी
जीवन को आधार दिया
— प्रमोद कुमार स्वामी