खून के रिश्ते
खून के रिश्ते
“मम्मी-मम्मी, बड़े पापा की तबीयत अचानक से बहुत खराब हो गई है। वे खून की उल्टियां कर रहे हैं। बड़ी मम्मी जोर-जोर से रो रही हैं।” बारह वर्षीय बेटे संतोष ने अपनी मम्मी को धीरे से बताया।
“क्या कहा… खून की उल्टियां… भैय्या को… फिर से… खून की उल्टियां…।” काम से लौट कर अपने कमरे में आराम कर रहे संतोष के पिता रमेश जी बोले और तुरंत दौड़ते हुए भैय्या के घर पहुंच गए। उनके पीछे-पीछे पत्नी और बेटा संतोष भी वहां पहुंच गए। रमेश अपनी भाभी और पत्नी से तुरंत विचार-विमर्श कर अपनी कार में ही भैया-भाभी को लेकर हॉस्पिटल के लिए निकल पड़ा।
उनके जाने के बाद संतोष ने अपनी मम्मी से पूछा, “मम्मी, ये पापा को आज अचानक क्या हो गया ? परसों ही तो बड़े पापा से लड़ते-झगड़ते हुए कह रहे थे कि अब से हमारा आपसे हमेशा के लिए संबंध खत्म… आप मरते रहेंगे तो हम गंगाजल तक डालने भी नहीं आएंगे, फिर ये सब…?”
“बेटा, ये सब तुम अभी नहीं समझ सकोगे। खून के रिश्ते होते ही ऐसे हैं। संकट के समय अपने ही काम आते हैं।” मां ने प्यार से बेटे का सिर सहलाते हुए कहा।
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़