भुला कर हर बात फिर से, बसाएं ज़िंदगी अपनी।
भुला कर शिकवे सारे ,फिर सजाएं ज़िंदगी अपनी।
दो पल की है ज़िंदगी प्यारे बड़ी अनमोल मिली है,
सत्य कर्म और परमार्थ पर चलाएं ज़िंदगी अपनी।
उलझ जाते कभी रिश्ते मामूली सी बात से अक्सर,
मिटा दो भेद सब अपने न उलझाएं ज़िंदगी अपनी।
मन चंचल बड़ा होता न चाही बात को रहा चाहता,
सदा आपने हठ के आगे नहीं गवाएं ज़िंदगी अपनी।
मिला अनमोल जीवन है, क़द्र इस की करो दिल से,
छोड़ रुसवाईयां दिल की नहीं रुलाएं ज़िंदगी अपनी।
सुख दुख आने जाने हैं ,जब तक सांस का बसेरा है,
सदा मुहब्बत और सत्कार से निभाएं ज़िंदगी अपनी।
कभी तकरार हो जाए मर्यादा बनाए रखना ज़बाॅं से,
किसी को बुरा कह कर के न दुखांएं ज़िंदगी अपनी।
भुला कर हर बात फिर से ,नई दुनिया बसा लें हम,
आओ गले में डाल कर बांहें बहलाएं ज़िंदगी अपनी।
— शिव सन्याल