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स्वतंत्रता सेनानी पं.हरिप्रसाद मिश्र‘सत्यप्रेमी’

स्वतंत्रता सेनानी पं.हरिप्रसाद मिश्र‘सत्यप्रेमी’

 

रचयिता :-   शशांक मिश्र भारती

 

 

 

 

 

स्मारिका 27 जनवरी 2023

रचयिता :-   शशांक मिश्र भारती

सम्पादक

देवसुधा हिन्दी सदन बड़ागांव

शाहजहांपुर उ0प्र0 242401

दूरवाणी :-9410985048/9634624150

ईमेल :- [email protected]

ब्लाग :- हिन्दीमन्दिर एसपीएन ब्लागपोस्टडाटकाम

 

 

 

 

 

 

 

 

मन की बात

 

मां श्रीपूर्णागिरी के चरणों में सेवारत

शाहजहांपुर का वाशिन्दा हूं मैं

पं-रामप्रसाद बिस्मिल] अशफाक

रोशनसिंह के शहर का कारिन्दा हूं मैं।

मित्रों चलना यदि जरूरी है तो चलिए

संभल संभल कर इस जमीं पर

सर शहीदों के बोये गये हैं जी हां

उस शाहजहांपुर का वाशिन्दा हूं मैं।।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

वंशावली

      श्री ब्रह्मा जी – मरीचि -कश्यप – अग्निकुंड -शांडिल्य -हुताशन -मनोरथतिवारी ;राजपुरोहित गंगाराम जी की कन्या से दूसरा विवाह करने से मिश्र कहलाये – देवनाभ -शारंगधर -गदाधर -श्रीहर्ष -;हिमकर ,ललकर, गोपीनाथ , परशु  हिमकर -शंकर ,क्षेमराज ,जयभद्र -जयभद्र – दोपुत्र एक से कई पीढ़ियों के बाद – छविनाथ मिश्र ;पांच भाई लक्ष्मीनारायण, हीरालाल, रामनाथ,दीनानाथ और मोतीलाल की चार लड़कियां,रामनाथ के एक लड़की, लक्ष्मीनारायण के दो लड़के कालिकाप्रसाद और मोग्नाथ.मोग्नाथ के द्वारिकाप्रसाद और फिर उनसे बसन्त रायपुर में।कालिकाप्रसाद का विवाह शाहजहांपुर में जौन के अग्निहोत्री के यहां हुआ इनसे-रामदयाल, रामलाल और भूपराम।रामदयाल ने विवाह नहीं किया।रामलाल से- पुत्र तीन -हरिप्रसाद मिश्र, शिवप्रसाद मिश्र व गुरुप्रसादमिश्र ,हरिप्रसाद मिश्र – विज्ञानस्वरूप – तीनलड़कियां

शिवप्रसादमिश्र-  तीन पुत्र कृष्णस्वरूप, आनन्द स्वरूप, भगवानस्वरूप व एक पुत्री विवाह सौंफरी में हुआ।

कृष्णस्वरूप मिश्र – जागेन्द्र प्रसाद ,बागेन्द्र प्रसाद, बागेन्द्रप्रसाद से तीन पुत्र रामगौरव,रामअंकित व विकास

आनन्दस्वरूप मिश्र से अवनीश, अक्षय, सुबोध, अशोक व राजीव- पांच पुत्र व एक पुत्री भगवानस्वरूप मिश्र से एक पुत्र व एक पुत्री

गुरुप्रसाद मिश्र – रामाधार मिश्र व कृष्ण कुमार मिश्र दो पुत्र

रामाधार मिश्र से दो पुत्र अभिनव मिश्र ,शशांकमिश्र व दो पुत्रियां

अभिनवमिश्र -दो पुत्रियां

शशांक मिश्र -एक पुत्र शिखर मिश्र व दो पुत्रियां

कृष्ण कुमार मिश्र- एक पुत्र व एक पुत्री पुत्र 2002 से अज्ञात

कालिका प्रसाद मिश्र के तीसरे पुत्र भूपराम से बांकेलाल,जिनसे एक पुत्र- देवेन्द्रनाथ व दो पुत्रियां पनबाड़ी में ब्याहीं-देवेन्द्रनाथ से चार पुत्र व एक पुत्री ।

 

 

 

 

 

 

 

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शहीदों की नगरी कहलाने वाला शाहजहांपुर कभी किसी क्षेत्र में पीछे नहीं रहा।समय-समय पर अनेक प्रतिभाओं, सेनानियों, सुधी मनीषियों ने अपने योगदान तन-मन के बलिदान से जनपद का नाम गौरवान्वित किया।समाज व इतिहास में अपनी उपस्थिति दर्शायी।अन्य तहसीलों की भांति तहसील पुवायां किसी भी क्षेत्र में पीछे न रही है।खोज करने पर कोई न कोई मोती निकल ही आता है।साहित्य का क्षेत्र हो, राजनीति या आजादी का आंदोलन।भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी महती भूमिका के कारण जिनको सम्पूर्ण देश में जाना गया, ऐसे बहुमुखी प्रतिभा के धनी,साहसी,वीर व कर्मठ व्यक्तित्व पं. हरिप्रसाद मिश्र ’सत्यप्रेमी  की जननी,जन्म भूमि इसी पुवायां की धरती रही है।

आज से लगभग छः दशक पूर्व 1956-57 के आसपास स्वर्ग वासी हुए सत्यप्रेमी जी का मूल निवास स्थान पुवायां से शाहजहांपुर मार्ग पर स्थित बड़ागाँव था।बचपन से लेकर युवावस्था तक अधिक समय यहीं बीता अनेक समाज-देशहित की गतिविधियों में संलग्न रहे।अपने निजी,परिवारिक हितों की अपेक्षा देश-समाजहित को महत्व दिया ,कई बार परिवारिक सदस्यों को अभावों के सहारे अकेले भी छोड़ना पड़ा।उनके समय के गांव के अनेक लोगों ने देश के स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने का निर्णय लिया, लेकिन एक सत्यप्रेमी जी ही ऐसी मिट्टी के बने थे जिनको बिटिश हुकूमत का दमनचक्र झुका न सका एक बार जो निर्णय ले लिया।जीवन भर उसी पर अडिग रहे।संघर्ष के समय जेल जाना अधिकाधिक समय तन्हाई में बिताना तो सामान्य सी बात बन गई थी।देश की आजादी के लिए बाधक बन रहे परिवारिक दायित्वों को कई बार अनदेखा कर देते थे

एक मध्यम वर्गीय कान्यकुब्ज ब्राह्मण परिवार में जन्में सत्यप्रेमी जी की आरम्भिक शिक्षा मिडिल स्कूल पुवायां में हुई, जहां से इन्होंने आठवीं की थी।इनको पढ़ना-लिखना अच्छी तरह से आता था।समयानुसार इनका विवाह शाहजहांपुर सदर के भीमसेन की बहिन के साथ हुआ।जिनसे इनके तीन संतानें एक लड़का और दो लड़कियां हुईं।पं. रामलाल मिश्र के पुत्र के रुप में जन्में यह कुल तीन भाई थे।जिनमें यह सबसे बड़े थे।इनसे छोटे शिवप्रसाद मिश्र व सबसे छोटे गुरुप्रसाद मिश्र थे ।इनके एकमात्र पुत्र विज्ञानस्वरुप जोकि अध्यापक थे नब्बे के दशक में निधन हो गया।बहू बाराबंकी में अपनी पुत्री मंजू के समीप एक लम्बे समय तक रही जिनका दिनांक 11/10/2016 को सायं बाराबंकी में निधन हो गया।बाराबंकी के डी.सी. से 1989 में सेवानिवृत्त व राष्ट्रधर्म के पहले संपादक फिर प्रधान संपादक आनन्दमिश्र अभय इनके छोटे दामाद हैं।

इनके द्वारा 1920 के आस-पास स्थापित हिन्दी मंदिर आज भी हिन्दी सदन के परिवर्तित नाम के साथ साहित्य हित में उल्लेखनीय योगदान दे रहा है।जिसके नाम पर बने ब्लाग hindimandir spn पर प्रतिदिन सैंकड़ों पाठक जाकर अपनी पसन्द की सामग्री पढ़ते हैं।जहां से अब तक लगभग  दो दर्जन पुस्तकें छप चुकी हैं।आधा दर्जन से अधिक गूगल अमेजन फ्लिपकार्ट रेडिफ आदि आनलाइन प्लेटफार्मों पर बिक्री के लिए उपलब्ध हैं

यद्यपि इनके जीवन का अधिकांश समय शाहजहांपुर में बीतने, यहां से ही अपनी अधिकांश गतिविधियों का संचालन करने के बाद भी यहां की जनता व जनपद  इनके नाम को विस्मृत सा किये है।नयी पीढ़ी को इनके योगदान का भान नहीं है।स्वंय गांववासी भी भुला चुके हैं।दो- चार पुराने या जागरूक लोग जानते हैं।शायद इसका कारण इनके नाम पर जनपद या गांव में कोई कार्य न होना, बाद के जनप्रतिनिधियों और प्रशासन के द्वारा लगातार उपेक्षा का परिणाम है।पर बाराबंकी जनपद के बच्चे-बच्चे की जुबान पर इनका नाम आजाता है।हालांकि वहां के लोग भी इनके बारे मे अधिक नहीं जानते न हीं मूल निवास से परिचित हैं।बाराबंकी शहर के मुहल्ले, पार्क व मार्ग इनके नाम पर देखे जा सकते हैं।वहां की जनता इनके चित्र तक के लिए भी तरसती है, कि किसी भी तरह इनका साक्षात हो सके।पर दुर्भाग्य से इनका कोई स्पष्ट चित्र उपलब्ध नहीं है।वास्तव में यह चित्र खिंचाने के विरुद्ध थे और जीवन भर कोई चित्र नहीं खि्ांचाया।एक बार बाराबंकी शहर के किसी सुनार मित्र ने इनका एक चित्र चुपके से खिंचवा दिया था।जिसकी एक प्रति अस्पष्ट रूप में इनके परिवारिक सदस्यों के पास उपलब्ध है।उससे ही मैंने अपने गांव के चित्रकार के सहयोग से नया चित्र बनवाया और प्रसारित किया है।

इनके जीवन का अधिकांश समय जनपद शाहजहांपुर की धरती पर बीता कर्मभूमि भी यही रही।बड़ागांव का निवास इनकी अनेक आजादी विषयक गतिविधियों का केन्द्र रहा।इनके समय पर अनेक राजनेताओं नें गांव में कदम रखे।प. जवाहर लाल नेहरू व गोविंद बल्लभ पंत के आने का पता पारिवारिक सूत्रों से चलता है।कुछ परिवारिक व राजनीतिक कारणोंवश इनको उन्नीसौ चालीस-पचास के मध्य गांव छोड़ना पड़ा और उसके बाद के अल्प समय की सारी गतिविधियां बाराबंकी से संचालित हुईं।इनका अपनी छोटी लड़की के विवाह के दिन आकस्मिक निधन हो गया।

Proceeding official report के भाग-154 समस्या 01-03 Authoy utter Pradesh India legisiatilature legislative assembly published 1981 में बाराबंकी जिले में 207 नवाबगंज दक्षिण प्रथम विधानसभा 1952 से 1957 तक सदस्य रहे उमाशंकर मिश्र के माध्यम से श्री चन्द्रभानुशरण सिंह तथा श्री हरिप्रसाद सत्यप्रेमी के निधन पर शोकोद्गार शीर्षक से 23 से 26 पृष्ठ मिलता है।जिसमें इन्होनें तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष को सम्बोधित करते हुए पण्डित जी को श्रृद्धांजलि देते हुए बड़ा ही वीर और साहसी बतलाया है।इसी पुस्तक के पृष्ठ 25 पर वह लिखते हैं कि पं हरिप्रसाद मिश्र सत्यप्रेमी को मैं बीस वर्ष से जानता हूं और मुझे बीस साल से बराबर उनके साथ काम करने का मौका मिला है। इस पृ. के अगले पन्ने पर गोआ हत्याकांड के वीर शहीदों के प्रति श्रद्धांजलि दी गयी है।इस आधार पर सत्यप्रेमी जी के निधन का साल 1957 से पूर्व माना जा सकता है।सत्यप्रेमी जी एक स्वतंत्रता सेनानी के साथ-साथ समाजसुधारक, साहित्यकार व पत्रकार भी थे।संघर्षी जीवन के मध्य मिले समय का उपयोग सृजन,सामाजिक बुराईयों को दूर करने में करते थे।जीवन भर कठिनाईयां, कारागार भोगते हुए इन्होंने पाठकों कों बहुत कुछ देने का प्रयास किया है।इन्होंने अपने जीवन काल में सात पुस्तकें-1-राष्ट्रभेरी -1929, 2-हमारी सामजिक कुरीतियां– 1936, 3-सुलभ चिकित्सा घरेलू वैद्य 4-भारत में बिट्शि शासन और उससे मुक्ति की कहानी-1954, 5-मुक्ति के मार्ग, 6-शिक्षाप्रद दोहे ,7-स्वर्ण सीकर लिखी हैं।जिनमें से क्रम संख्या दो व चार मेरे पास अत्यन्त जर्जर अवस्था में उपलब्ध

थीं,जिनको मैंने पढ़ा था।कुछ साल पूर्व एक शोधार्थी के मांगने पर कोरियर से भेजी।पर दुर्भाग्य से वह रास्ते में खो गयीं न उसे मिली और न ही मेरे पास रह पायीं।इनको पढ़ते समय कुछ अंश नोट कर लिए थे जिनका उल्लेख इस आलेख में यथा स्थान किया है।

बिटिश शासन और उससे मुक्ति की कहानी, पुस्तक की भूमिका में यह  पुस्तक प्रकाशन पर अपना उद्देश्य स्पष्ट करते हुए लिखते हैं-‘‘सन् 1934 ई0 का काल था और मैं पुनः एक लम्बी अवधि का कारावास भोगकर अपने भवन पर रक्ताल्पता रोग की चिकित्सा कर रहा था और कभी-कभी सन् 1921 ई0 से उस समय तक के अध्ययन के यत्र तत्र नोट पढ़ने लगता था।उन नोटों को पढ़ते-पढ़ते यह लोभ पैदा हुआ कि यदि इन सबको श्रृखंलाबद्ध कर के पुस्तक रुप में तैयार करके प्रकाशित कर दिया जाए तो हिन्दी भाषा की भी सेवा हो और राजनैतिक कार्य कर्ताओं के ज्ञान में वृद्धि कराकर वर्तमान स्थिति (परतंत्रता) से जनता में असन्तोष पैदा किया जा सकता हैं।“

अर्थात उनका उद्देश्य अपनी कृति के माध्यम से हिन्दी की सेवा के साथ-साथ अंग्रेज साम्राज्य को उखाड फेंकने का वातावरण उत्पन्न करना था।देश के नौजवानों को देश की तात्कालिक दशा और दिशा से अवगत कराना था।साथ ही यह भी पता चलता है कि वह इससे पहले भी जेल गये थे।

इसी पुस्तक में वह यूरोपीय आविष्कारों व भौतिकवादिता पर पृष्ठ संख्या -25 पर लिखते हैं ,कि किस तरह मानव अपने स्वार्थ की पूर्ति और अन्धी विकास की दौड़ में प्रकृति की उपेक्षा कर रहा है।यह बात आज के विश्वपरिदृश्य में कितनी सार्थक है।पुस्तक का अंश देखिए –

भूलता जाता हैं यूरोप आसमानी बाप को

बस खुदा समझा हैं उसने वर्क को और भाप को

यह अंग्रेजां को भारत पर शासन करने के योग्य भी नहीं मानते थ।उनको यह अनुभव था कि किस प्रकार हमारा देश अंग्रेजों की लापरवाही के दुष्परिणाम भुगत रहा है।इस सम्बन्ध में भी उन्होनें अपनी इसी पुस्तक के पृष्ठ संख्या -76 पर लिखा हैं–

’’ऊँचे- ऊँचे पदाधिकारी सिर्फ पॉंच वर्ष के लिए विलायत से यहां भेजे जाते थे।वह जो कुछ कहते ठीक माना

जाता था।जैसे ही वह यहॉ की कुछ जानकारी प्राप्त करते थे।वैसे ही विलायत वापस हो जाते थे।भला वह कैसे भारत में शासन करने के योग्य हो सकते थे अंग्रेज सबसे अधिक भारत में शासन करने के अयोग्य तो इसलिए थे कि वह हर तरह से हमारी उन्नति में लापरवाही करते थें।“

यह जाति प्रथा छुआ-छूत, आडम्बरों आदि के भी घोर विरोधी थे।उसको समाज-देश के लिए अच्छा भी नहीं मानते थे।हमारी सामाजिक कुरीतियां, पुस्तक इनके ऐसे व्यक्तित्व का प्रमाण हैं।भारतीय सामाजिक बुराइयों पर सत्यप्रेमी जी में अपनी इसी पुस्तक में पृष्ठ संख्या -01 पर लिखा है कि जिस आर्य जाति ने समस्त संसार को अपनी सभ्यता और संस्कृति की धाक जमा रखी थीं।जिसके घर में संसार को कर्म योग सिखाने वाली गीता और ज्ञान की अमूल्य सम्पति वेद मौजूद हैं।जिस जाति ने यूनानियों के विश्वविजयी सिकन्दरी बेड़े को अपने बाहुबल से मुंह  फेर लेने को विवश कर दिया था।आज वही जाति वेद शास्त्र विरुद्ध, विवेक हीन रुढ़ियों

का पालनकर अपना सर्वनाश कर रही है और मिस मेमों जैसी यूरुपियन महिलाओं की हंसी का कारण बन रही हैं।आज दिन दहाड़े उस जाति की सम्पति उसकी स्त्रियां, बच्चे और अछूत लूटे जा रहे हैं।लेकिन फिर भी चेत नही हो रहा है।

इसी पुस्तक में मनुस्मृति अध्याय -3 का उदाहरण देते हुए वह पृष्ठ संख्या-सात पर लिखते हैं–

’’कि वेद मनुष्य मात्र को परस्पर रोटी का सम्बन्ध स्थापित करने की आज्ञा देते हैं।यदि अछूत सफाई से रहे तो उसके साथ भोजन करने में भी वेद विरुद्ध नहीं है।अब धर्मशास्त्र को लीजिए -जो रोटी ही नहीं बेटी का सम्बन्ध करने तक की आज्ञा देते हैं।’’

आजादी आंदोलन के समय कारागार भोगना इनके जीवन की सामान्य घटना थी।1921 से 1934 तक के लम्बे कारावास का उल्लेख इनकी पुस्तक बिटिश शासन और उससे मुक्ति की कहानी में मिलता है।इससे पूर्व या बाद भी यह कारावास गए थे।इसका स्पष्ट पता नहीं चलता।इनकी परिसम्पत्तियां का आये दिन कुर्क किया जाना अंग्रेजी हुकूमत

के समय एक सामान्य घटना थी।प्रत्येक महीने चार-छः बार तक भी सम्पत्ति कुर्क हो जाती थी एक-दो बार इन्होंनें मकान का कुछ जरुरी सामान पहले ही पड़ोसी पं. राजाराम तिवारी के यहां भी रख दिया था।1934 के बाद पुलिस इनको पकड़ने में असफल रही ऐसा कई पुराने लोगों के मुख से सुनने में आया है।जब इनके एकमात्र पुत्र का विवाह निगोही से हुआ।विवाह तय होते ही निगोही के लोगों में उत्सुकता पैदा हो गयी कि इसी बहाने सत्यप्रेमी जी के दर्शन हो जायेंगे।नजदीक से देख लेंगे।अपनी उत्सुकतावश काफी लोग बारात के बहाने निगोही आये पर उसमें भी अंग्रेजी हुकूमत की जबरदस्त घेराबन्दी के चलते यह सम्मिलित नहीं हो पाये थे और विवाह का सारा दायित्व इनके मझले भाई शिवप्रसाद मिश्र ने निभाया था।जो उस समय खुटार क्षेत्र के अमीन हुआ करते थे।

1942  में महात्मा गांधी के द्वारा भारत छोड़ों आंदोलन छेड़ने पर यह भी सक्रिय हो गये थे।फलतः एक बार पुनः बड़ागांव के मकान की इनकी सम्पत्ति कुर्क कर ली गई।जिसमें ‘‘बिट्शि शासन और उससे मुक्ति की कहानी की पाण्डुलिपि भी पुलिस के हाथ लग गई थी, लेकिन कागजात के ढेर व बोरे में रखी होने से पुलिस की दृष्टि उस पर न पड़ी और फिर वह उन्हीं कागजातों व सामान के साथ सन् 1944 में अन्य सामान के साथ ही वापस मिल गई।आंदोलन के दौरान इनके सहयोगियों में रफी अहमद किदवई, पं. गोविन्द बल्लभ पंत, चन्द्रभानु गुप्त व जयराम शर्मा का नाम लिया जाता है।पं. नेहरु व गांधी का सानिध्य भी इन्हें मिला।एक बार पं. नेहरु अपनी बेटी इन्दिरा प्रिदर्शिनी के साथ इनके यहां बड़ागांव निवास पर आये थे।यह घटना लगभग 1921 के आस- पास की रही होगी।

सत्यप्रेमी जी राजनीति में अवसर मिलने पर सक्रियता दिखाने से नहीं चूके।स्वतंत्रता आंदोलन में उन्होंने भागीदारी कांग्रेस संगठन के सदस्य के रूप में निभायी थी।सांगठनिक गतिविधियों में भी इनकी भागीदारी रहती थी।स्वतंत्रता से पूर्व वह कहीं से चुनाव लड़े हों पता नहीं चलता है,परन्तु सन् 1952 से 1956 तक विधान सभा सदस्य का विवरण उनकी पुस्तक बिट्शि शासन और उससे मुक्ति की कहानी में मिलता है।ऐसा भी सुना जाता है, कि बाराबंकी सीट आरक्षित होने पर अपने नौकर को चुनाव लड़वाकर जिताया

था।इसी समयावधि में पं. गोविंद बल्लभ पंत द्वारा बिधानपरिषद के लिए मनोनीत किये जाने का भी सुनने में आया है।जिस समय इनका निधन हुआ यह विधान परिषद

सदस्य थे यह विदित है और विधान सभा में शोक श्रृद्धांजलि से स्पष्ट भी है।सत्य प्रेमी जी की पुस्तकें सत्यसदन बाराबंकी व अबधवासी कार्यालय बाराबंकी से प्रकाशित हुई थीं।पुस्तक प्राप्ति स्थान में हिन्दी मन्दिर (वर्तमान में हिन्दी सदन) बड़ागांव शाहजहांपुर का नाम उनकी उपलब्ध पुस्तकों पर मिलता है।

सम्प्रति उपरोक्त जानकारी स्वर्गीय सत्यप्रेमी जी पर अत्यल्प ही है।परिवारिक सूत्रों व इनको जानने वालों या विधानसभा की बुकलेटों से जुटायी गयी है।शाहजहांपुर के स्वतंत्रता सेनानियों की सूची में इनका नाम पुवायां ब्लाक के अर्न्तगत बड़ागांव के निवासी के रूप में मिलता है।जेल के शिलालेख में भी इनका उल्लेख है।उनके कृतित्व व व्यक्तित्व से सम्बन्धित कार्यों पर शोध किये जाने से और अधिक जानकारियां तो प्राप्त होंगी ही।जनपद व क्षेत्र के इने-गिने लोग ही न जानकर प्रत्येक वर्ग व व्यक्ति परिचित हो सकेगा इनके

कार्य को स्मरणीय बनाने के लिए बड़ागांव का नाम अथवा जनपद के किसी मार्ग ,पार्क आदि का नाम इनके नाम पर रखा जा सकता है।ताकि वर्तमान पीढ़ी से लेकर भावी पीढ़ी तक इनके योगदानों से अनभिज्ञ न रह सके और इनके कार्यों से प्रेरणा ले।इनके आजादी के आंदोलन के समय 1921 से 1947 तक के वीरता और साहस पूर्ण कार्य प्राणशक्ति देने का काम करें। मैंने अपने स्तर से इनको मीडिया व अनेक माध्यमोंसे लगातार जलता व प्रशासन तक पुंचाने का प्रयास किया है ताकि अधिक से लोग इनको जानें और इनसे दे के प्रति दायित्व निर्वहन की प्रेरणा लें।

 

 

 

इन पर प्रकाशनः

स्वर्गविभा अन्तरजाल- 08 अक्टूबर 2012

हिन्दीमन्दिरब्लाग- 27/12/2015-03/06/2018

लक्ष्यजागरण सा0 -24 से 30 जनवरी 2016 पृ.07

रचनाकार अन्तरजाल -22 दिसम्बर 2015

त्वरित आवाज सा0 12 से 18 मई 2019 पृ04

आदित्य संस्कृति दिस.जनवरी 2022 पृ.10.11

प्रतिलिपि ई 29/03/2023 से

जयविजय मासिक पर ई बुक में 21/04/2023

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

हिन्दी सदन

(हिन्दी मंदिर का उत्तराधिकारी संस्थान) के गौरव

ऽ-राष्ट्रभेरी -1929-             पं. हरिप्रसाद मिश्र‘सत्यप्रेमी’

ऽ-हमारीसामाजिककुरीतियां-1936-पं.हरिप्रसाद मिश्र‘सत्यप्रेमी

ऽ-सुलभ चिकित्सा व घरेलू वैद्य-1936- पं.हरिप्रसाद मिश्र‘सत्यप्रेमी

ऽ-भारत में बिट्रिश शासन और उससे मुक्ति की कहानी-1954   पं. हरिप्रसाद मिश्र‘सत्यप्रेमी

ऽ-मुक्ति के मार्ग-1954        पं. हरिप्रसाद मिश्र‘सत्यप्रेमी’

ऽ-स्वर्ण सीकर-1954            पं. हरिप्रसाद मिश्र‘सत्यप्रेमी’

S-हम बच्चे (बालगीतसंग्रह) 2001,   शशांक मिश्र‘भारती’

ऽ-पर्यावरण की कविताएं 2004,         शशांक मिश्र‘भारती’

ऽ-बिना विचारे का फल-2006,              शशांक मिश्र ‘भारती’

ऽ-अमृत कलश-2007(राष्ट्रीय स्तर का कविता संचयन) शशांक मिश्र‘भारती’

ऽ-क्यों बोलते हैं बच्चे झूठ(बाल मनोविज्ञान)-2008/18  शशांक मिश्र‘भारती’

ऽ-देवसुधा-(उ.स्तरीय कवितासंचयन)- 2009        शशांक मिश्र‘भारती’

ऽ-मुखिया का चुनाव(बालकथा संग्रह)-2010/2018   शशांक मिश्र‘भारती’ व

उड़िया भाषा में प्रकाशित 2018

ऽ-देवसुधा-(द्वितीय-अखिलभारतीय काव्य संकलन)-2010  शशांक मिश्र‘भारती’

ऽ-आओ मिलकर गाएं (बालगीत संग्रह)-2011            शशांक मिश्र‘भारती’

ऽ-देवसुधा-(तृतीय,लघुकथा विधा पर केन्द्रित)-2012     शशांक मिश्र‘भारती’

ऽ-देवसुधा-(चतुर्थ,मूलतः प्रथमप्रकाशित काव्यरचना पर)-2013 शशांक मिश्र‘भारती’

ऽ-दैनिक प्रार्थना-(विद्यालयी प्रार्थनाएं)-2013             शशांक मिश्र‘भारती’

ऽ-देवसुधा-(पंचम,पर्यावरण विषयक काव्यरचनाओं पर)-2014  शशांक मिश्र‘भारती’

ऽ-माध्यमिक शिक्षा और मैं-( निबन्ध संकलन) -2015/18   शशांक मिश्र‘भारती’

ऽ-देवसुधा-(षष्ठ,कवि की प्रतिनिधि काव्यरचना पर)-2014    शशांक मिश्र‘भारती

ऽ-स्मारिका -;सत्यप्रेमी जी परद – 2018                   शशांक मिश्र‘भारती

ऽ-स्कूल का दादा -;बालकथा – 2018                         शशांक मिश्र‘भारती

ऽ-देवसुधा-(सात संपादकीय चिंतन पर पर)-2018           शशांक मिश्र‘भारती

ऽ-मेरी भी सुनो !-(समसामयिक निबन्ध संकलन) -2019      शशांक मिश्र‘भारती

ऽ-देवसुधा-(आठ छात्रजीवन की रचनाओं पर)-2019          शशांक मिश्र‘भारती

ऽ-जंगल हुआ भयमुक्त -;बालकथा- 2019                         शशांक मिश्र‘भारती

ऽ-नकलची बन्दर -;बालकथा- 2019                                  शशांक मिश्र‘भारती

ऽ-भ्रष्टाचार ही राजधर्म है -;प्रतिनिधि कविताओं पर -2019    शशांक मिश्र‘भारती

 

 

*शशांक मिश्र भारती

परिचय - शशांक मिश्र भारती नामः-शशांक मिश्र ‘भारती’ आत्मजः-स्व.श्री रामाधार मिश्र आत्मजाः-श्रीमती राजेश्वरी देवी जन्मः-26 जुलाई 1973 शाहजहाँपुर उ0प्र0 मातृभाषा:- हिन्दी बोली:- कन्नौजी शिक्षाः-एम0ए0 (हिन्दी, संस्कृत व भूगोल)/विद्यावाचस्पति-द्वय, विद्यासागर, बी0एड0, सी0आई0जी0 लेखनः-जून 1991 से लगभग सभी विधाओं में प्रथम प्रकाशित रचना:- बदलाव, कविता अक्टूबर 91 समाजप्रवाह मा0 मुंबई तितली - बालगीत, नवम्बर 1991, बालदर्शन मासिक कानपुर उ0प्र0 -प्रकाशित पुस्तकें हम बच्चे (बाल गीत संग्रह 2001) पर्यावरण की कविताएं ( 2004) बिना बिचारे का फल (2006/2018) क्यो बोलते है बच्चे झूठ (निबध-2008/18)मुखिया का चुनाव (बालकथा संग्रह-2010/2018) आओ मिलकर गाएं(बाल गीत संग्रह 20011) दैनिक प्रार्थना(2013)माध्यमिक शिक्षा और मैं (निबन्ध2015/2018) स्मारिका सत्यप्रेमी पर 2018 स्कूल का दादा 2018 अनुवाद कन्नड़ गुजराती मराठी संताली व उड़िया में अन्यभाषाओं में पुस्तकें मुखिया का चुनाव बालकथा संग्रह 2018 उड़िया अनुवादक डा0 जे.के.सारंगी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन -जून 1991 से हास्य अटैक, रूप की शोभा, बालदर्शन, जगमग दीपज्योति, देवपुत्र, विवरण, नालन्दा दर्पण, राष्ट्रधर्म, बाल साहित्य समीक्षा, विश्व ज्योति, ज्योति मधुरिमा, पंजाब सौरभ, अणुव्रत, बच्चों का देश, विद्यामेघ, बालहंस, हमसब साथ-साथ, जर्जर कश्ती, अमर उजाला, दैनिक जनविश्वास, इतवारी पत्रिका, बच्चे और आप, उत्तर उजाला, हिन्दू दैनिक, दैनिक सबेरा, दै. नवज्योति, लोक समाज, हिन्दुस्तान, स्वतंत्र भारत, दैनिक जागरण, बालप्रहरी, सरस्वती सुमन, बाल वाटिका, दैनिक स्वतंत्र वार्ता, दैनिक प्रातः कमल, दैं. सन्मार्ग, रांची एक्सप्रेस, दैनिक ट्रिब्यून, दै.दण्डकारण्य, दै. पायलट, समाचार जगत, बालसेतु, डेली हिन्दी मिलाप उत्तर हिन्दू राष्ट्रवादी दै., गोलकोण्डा दर्पण, दै. पब्लिक दिलासा, जयतु हिन्दू विश्व, नई दुनिया, कश्मीर टाइम्स, शुभ तारिका, मड़ई, शैलसूत्रं देशबन्धु, राजभाषा विस्तारिका, दै नेशनल दुनिया दै.समाज्ञा कोलकाता सहित देश भर की दो सौ से अधिक दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक, द्वैमासिक, त्रैमासिक, अर्द्धवार्षिक व वार्षिक पत्र-पत्रिकाओं में अनवरत। अन्तर जाल परः- 12 अगस्त 2010 से रचनाकार, साहित्य शिल्पी, सृजनगाथा, कविता कोश, हिन्दी हाइकु, स्वर्गविभा, काश इण्डिया ,मधेपुरा टुडे, जय विजय, नये रचनाकार, काव्यसंकलन ब्लाग, प्रतिलिपि साहित्यसुधा मातृभाषाडाटकाम हिन्दीभाषा डाटकाम,युवाप्रवर्तक,सेतु द्विभाषिक आदि में दिसम्बर 2018 तक 1000 से अधिक । ब्लागसंचालन:-हिन्दी मन्दिरएसपीएन.ब्लागपाट.इन परिचय उपलब्ध:-अविरामसाहित्यिकी, न्यूज मैन ट्रस्ट आफ इण्डिया, हिन्दी समय मा. बर्धा, हिन्दुस्तानी मीडियाडाटकाम आदि। संपादन-प्रताप शोभा त्रैमा. (बाल साहित्यांक) 97, प्रेरणा एक (काव्य संकलन 2000), रामेश्वर रश्मि (विद्यालय पत्रिका 2003-05-09), अमृतकलश (राष्ट्रीय स्तर का कविता संचयन-2007), देवसुधा (प्रदेशस्तरीय कविता संचयन 2009),देवसुधा (अ भा कविता संचयन 2010), देवसुधा-प्रथम प्रकाशित कविता पर-2011,देवसुधा (अभा लघुकथा संचयन 2012), देवसुधा (पर्यावरण के काव्य साहित्य पर-2013) देवसुधा पंचम पर्यावरणविषयक कविताओं पर 2014 देवसुधा षष्ठ कवि की प्रतिनिधि काव्यरचना पर 2014 देवसुधा सात संपादकीय चिंतन पर 2018 सह संपादन लकड़ी की काठी-दो बालकविताओं पर 2018 आजीवन.सदस्य/सम्बद्धः-नवोदित साहित्यकार परिषद लखनऊ-1996 से -हमसब साथ-साथ कला परिवार दिल्ली-2001 से -कला संगम अकादमी प्रतापगढ़-2004 से -दिव्य युग मिशन इन्दौर-2006 से -नेशनल बुक क्लव दिल्ली-2006 से -विश्व विजय साहित्य प्रकाशन दिल्ली-2006 से -मित्र लोक लाइब्रेरी देहरादून-15-09-2008 से -लल्लू जगधर पत्रिका लखनऊ-मई, 2008 से -शब्द सामयिकी, भीलबाड़ा राजस्थान- -बाल प्रहरी अल्मोड़ा -21 जून 2010 सेव वर्जिन साहित्य पीठ नई दिल्ली 2018 से संस्थापकः-प्रेरणा साहित्य प्रकाशन-पुवायां शाहजहांपुर जून-1999 सहसंस्थापक:-अभिज्ञान साहित्यिक संस्था बड़ागांव, शाहजहांपुर 10 जून 1991 प्रसारणः- फीबा, वाटिकन, सत्यस्वर, जापान रेडियो, आकाशवाणी पटियाला सहयोगी प्रकाशन- रंग-तरंग(काव्य संकलन-1992), काव्यकलश 1993, नयेतेवर 1993 शहीदों की नगरी के काव्य सुमन-1997, प्रेरणा दो 2001 प्यारे न्यारे गीत-2002, न्यारे गीत हमारे 2003, मेरा देश ऐसा हो-2003, सदाकांक्षाकवितांक-2004, सदाकांक्षा लघुकथांक 2005, प्रतिनिधि लघुकथायें-2006, काव्य मंदाकिनी-2007, दूर गगन तक-2008, काव्यबिम्ब-2008, ये आग कब बुझेगी-2009, जन-जन के लिए शिक्षा-2009, काव्यांजलि 2012 ,आमजन की बेदना-2010, लघुकथा संसार-2011, प्रेरणा दशक 2011,आईनाबोलउठा-2012,वन्देमातरम्-2013, सुधियों के पल-2013, एक हृदय हो भारत जननी-2015,काव्यसम्राटकाव्य एवं लघुकथासंग्रह 2018, लकड़ी की काठी एक बालकाव्य संग्रह 2018 लघुकथा मंजूषा दो 2018 लकड़ी की काठी दो 2018 मिली भगत हास्य व्यंग्य संग्रह 2019 जीवन की प्रथम लघुकथा 2019 आदि शताधिक संकलनों, शोध, शिक्षा, परिचय व सन्दर्भ ग्रन्थों में। परिशिष्ट/विशेषांकः-शुभतारिका मा0 अम्बाला-अप्रैल-2010 सम्मान-पुरस्कारः-स्काउट प्रभा बरेली, नागरी लिपि परिषद दिल्ली, युगनिर्माण विद्यापरिषद मथुरा, अ.भा. सा. अभि. न. समिति मथुरा, ए.बी.आई. अमेरिका, परिक्रमा पर्यावरण शिक्षा संस्थान जबलपुर, बालकन जी वारी इण्टरनेशनल दिल्ली, जैमिनी अकादमी पानीपत, विन्ध्यवासिनी जन कल्याण ट्रस्ट दिल्ली, वैदिकक्रांति परिषद देहरादून, हमसब साथ-साथ दिल्ली, अ.भा. साहित्य संगम उदयपुर, बालप्रहरी अल्मोड़ा, राष्ट्रीय राजभाषा पीठ इलाहाबाद, कला संगम अकादमी प्रतापगढ़, अ. भा.राष्ट्रभाषा विकास संगठन गाजियाबाद, अखिल भारतीय नारी प्रगतिशील मंच दिल्ली, भारतीय वाङ्मय पीठ कोलकाता, विक्रमशिला विद्यापीठ भागलपुर, आई.एन. ए. कोलकाता हिन्दी भाषा सम्मेलन पटियाला, नवप्रभात जनसेवा संस्थान फैजाबाद, जयविजय मासिक, काव्यरंगोली साहित्यिक पत्रिका लखीमपुर राष्ट्रीय कवि चौपाल एवं ई पत्रिका स्टार हिन्दी ब्लाग आदि शताधिक संस्था-संगठनों से। सहभागिता-राष्ट्रीय- अन्तर्राष्टीय स्तर की एक दर्जन से अधिक संगोष्ठियों सम्मेलनों-जयपुर, दिल्ली, प्रतापगढ़, इलाहाबाद, देहरादून, अल्मोड़ा, भीमताल, झांसी, पिथौरागढ़, भागलपुर, मसूरी, ग्वालियर, उधमसिंह नगर, पटियाला अयोध्या आदि में। विशेष - नागरी लिपि परिषद, राजघाट दिल्ली द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर वरिष्ठ वर्ग निबन्ध प्रतियोगिता में तृतीय पुरस्कार-1996 -जैमिनी अकादमी पानीपत हरियाणा द्वारा आयोजित तीसरी अ.भा. हाइकु प्रतियोगिता 2003 में प्रथम स्थान -हम सब साथ-साथ नई दिल्ली द्वारा युवा लघुकथा प्रतियोगिता 2008 में सर्वश्रेष्ठ प्रस्तुति सम्मान। -सामाजिक आक्रोश पा. सहारनपुर द्वारा अ.भा. लघुकथा प्रति. 2009 में सराहनीय पुरस्कार - प्रेरणा-अंशु द्वारा अ.भा. लघुकथा प्रति. 2011 में सांत्वना पुरस्कार --सामाजिक आक्रोश पाक्षिक सहारनपुर द्वारा अखिल भारतीय लघुकथा प्रतियोगिता-2012 में सराहनीय पुरस्कार -- जैमिनी अकादमी पानीपत हरियाणा द्वारा आयोजित 16 वीं अ.भा. हाइकु प्रतियोगिता 2012 में सांत्वना पुरस्कार ,जैमिनी अकादमी पानीपत हरियाणा द्वारा आयोजित 24 वीं अ.भा. लघुकथा प्रतियोगिता 2018 में सांत्वना पुरस्कार सम्प्रति -प्रवक्ता संस्कृत:-राजकीय इण्टर कालेज टनकपुर चम्पावत उत्तराखण्ड स्थायी पताः- हिन्दी सदन बड़ागांव, शाहजहांपुर- 242401 उ0प्र0 दूरवाणी:- 9410985048, 9634624150 ईमेल [email protected]/ [email protected]