कब आओगे
वो मानव क्या जिसमें ना हो कोई करुणा
जो प्रेम रहित हो जिसमें केवल बसी घृणा
एक सदी से रहे पिपासु जल ना पाया
अब झरने मिले तो नहीं रही कोई मन में तृष्णा
भाग दिए जो जीवन में सम्बन्ध कमाए
कोई कैसे बंटवारे को फिर से करे गुणा
बाट निहारूँ मीरा बन मैं प्रेम पुजारी
कब आओगे मेरे मन आंगन में मोरे कृष्णा
दु:ख के “गीत” भी बड़ी लगन से हम गाते हैं
कोई छेड़े जो आशाओं वाले तार की वीणा
— प्रियंका अग्निहोत्री “गीत”