नजरों की पहरा
गहरी नदिया सागर है गहरा
जमाने की नजरों का पहरा
कैसे प्रिये तेरी दीदार करूँ
प्रेम का कैसे मैं इजहार करूँ
दुश्मन बन गई जालिम ये जमाना
करती हो नई रोज कोई नई बहाना
कैसे प्रिये तेरी दीदार करूँ
प्रेम का कैसे मैं इजहार करूँ
पर्वत पे छाई है मनोरम हरियाली
सज गई जैसे सावन में दीवाली
कैसे प्रिये तेरी दीदार। करूँ
प्रेम का कैसे मैं इजहार करूँ
सामने सागर मै साहिल पे खड़ा हूँ
बालू की रेत पे बैठा मायुस पड़ा हूँ
कैसे प्रिये तेरी दीदार। करूँ
प्रेम का कैसे मैं इजहार करूँ
बस्ती बस्ती चली है हवा पुरवाई
पीपल की डाली ने ली अंगडाई
कैसे प्रिये तेरी दीदार करुँ
प्रेम का कैसे मैं इजहार। करूँ
अमुवा की डाली पे कूक रही कोयलिया
परदेशी प्रीत को बुला रही है गुजरिया
कैसे प्रिये तेरी दीदार करूँ
प्रेम का कैसे। मैं इजहार। करूँ
— उदय किशोर साह