गीत/नवगीत

“हर बिल्ला नाखून छिपाता

गीत “हर बिल्ला नाखून छिपाता”
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

सच्चाई में बल होता है,
झूठ पकड़ में है आ जाता।
नाज़ुक शाखों पर जो चढ़ता,
वो जीवनभर है पछताता।

समझदार को मीत बनाओ,
नादानों को मुँह न लगाओ।
बैरी दानिशमन्द भला है,
राज़ न अपना उसे बताओ।
आसमान पर उड़नेवाला,
औंधे मुँह धरती पर आता।
नाज़ुक शाखों पर जो चढ़ता,
वो जीवनभर है पछताता।

उससे ही सम्बन्ध बढ़ाओ,
प्रीत-रीत को जो पहचाने।
गिले भुलाकर गले लगाओ,
धर्म मित्रता का जो जाने।
मन के सागर में पलता है,
वफा-जफा का रिश्ता-नाता।
नाज़ुक शाखों पर जो चढ़ता,
वो जीवनभर है पछताता।

शक्ल सलोनी, चाल घिनौनी,
मुख में राम, बगल में चाकू।
धर्म-गुरू का रूप बनाए,
लूट रहे जनता को डाकू।
मूषक का मन भरमाने को,
हर बिल्ला नाखून छिपाता।
नाज़ुक शाखों पर जो चढ़ता,
वो जीवनभर है पछताता।

*डॉ. रूपचन्द शास्त्री 'मयंक'

एम.ए.(हिन्दी-संस्कृत)। सदस्य - अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग,उत्तराखंड सरकार, सन् 2005 से 2008 तक। सन् 1996 से 2004 तक लगातार उच्चारण पत्रिका का सम्पादन। 2011 में "सुख का सूरज", "धरा के रंग", "हँसता गाता बचपन" और "नन्हें सुमन" के नाम से मेरी चार पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। "सम्मान" पाने का तो सौभाग्य ही नहीं मिला। क्योंकि अब तक दूसरों को ही सम्मानित करने में संलग्न हूँ। सम्प्रति इस वर्ष मुझे हिन्दी साहित्य निकेतन परिकल्पना के द्वारा 2010 के श्रेष्ठ उत्सवी गीतकार के रूप में हिन्दी दिवस नई दिल्ली में उत्तराखण्ड के माननीय मुख्यमन्त्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक द्वारा सम्मानित किया गया है▬ सम्प्रति-अप्रैल 2016 में मेरी दोहावली की दो पुस्तकें "खिली रूप की धूप" और "कदम-कदम पर घास" भी प्रकाशित हुई हैं। -- मेरे बारे में अधिक जानकारी इस लिंक पर भी उपलब्ध है- http://taau.taau.in/2009/06/blog-post_04.html प्रति वर्ष 4 फरवरी को मेरा जन्म-दिन आता है