कविता

मोबाइल युग

अब तो बस खामोशी है
बिस्तर पर दोनों लेटे हैं
एक़ पूरब को मुँह करके
दूजा मुँह करके पश्चिम को
मैं अपने मोबाइल में व्यस्त
वो अपने मोबाइल में व्यस्त
दोनों हैं बस व्यस्त व्यस्त
बिन बोले
बिन देखें
दोनों थक कर
सो गए ले कर करवट
सुबह जब सूरज चढ़ा ऊपर
दोनों फिर व्यस्त मिले
अपने अपने मोबाइल
लिए अपने हाथों में.

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020