मुक्तक/दोहा

दोहे

राज गया राजा गये, गया राजसी रंग,
राजतन्त्र के राज में,लोकलाज क्यों भंग ?

राज गया राजा गये, गया राजसी ठाट.
राजतन्त्र के राज में,चुनकर आये भाट ।

राज गया राजा गये, लोकतंत्र का रंग,
बेमतलब करते सभी,आपस में ही जंग ।

राज गया राजा गये, अब जनता का राज.
जनजन है तकलीफ में, हुई कोढ़ में खाज ।

राज गया राजा गये, करते नेता राज।
कान बन्द ताने सुने, नहीं उन्हें है लाज ।

— लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला

लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला

जयपुर में 19 -11-1945 जन्म, एम् कॉम, DCWA, कंपनी सचिव (inter) तक शिक्षा अग्रगामी (मासिक),का सह-सम्पादक (1975 से 1978), निराला समाज (त्रैमासिक) 1978 से 1990 तक बाबूजी का भारत मित्र, नव्या, अखंड भारत(त्रैमासिक), साहित्य रागिनी, राजस्थान पत्रिका (दैनिक) आदि पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित, ओपन बुक्स ऑन लाइन, कविता लोक, आदि वेब मंचों द्वारा सामानित साहत्य - दोहे, कुण्डलिया छंद, गीत, कविताए, कहानिया और लघु कथाओं का अनवरत लेखन email- [email protected] पता - कृष्णा साकेत, 165, गंगोत्री नगर, गोपालपूरा, टोंक रोड, जयपुर -302018 (राजस्थान)