दोहे
राज गया राजा गये, गया राजसी रंग,
राजतन्त्र के राज में,लोकलाज क्यों भंग ?
राज गया राजा गये, गया राजसी ठाट.
राजतन्त्र के राज में,चुनकर आये भाट ।
राज गया राजा गये, लोकतंत्र का रंग,
बेमतलब करते सभी,आपस में ही जंग ।
राज गया राजा गये, अब जनता का राज.
जनजन है तकलीफ में, हुई कोढ़ में खाज ।
राज गया राजा गये, करते नेता राज।
कान बन्द ताने सुने, नहीं उन्हें है लाज ।
— लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला