लघुकथा – मेहनत और आत्मविश्वास
राज और बबलु एक ही साथ पढते थे इस कारण दोनो की दोस्ती बहुत अच्छी थी। हर पल दोनो एक साथ रहते। यह देख बबलु के पिता को अच्छा न लगता था ,क्योकि जहां वह गांव के एक सम्पन्न परिवारो मे से एक थे, वही राज एक गरीब परिवार का बेटा था। इसीलिए एक दिन बबलू के पिता उसे अपने पास बुला कर समझाने लगे —- बेटा , हमारा समाज में अपनी एक अलग प्रतिष्ठा हैं और तुम्हारा राज जैसे लोगों के साथ रहना शोभा नहीं देता। इतने में राज भी वहां पहुंच गया, कुछ हद तक उसने बातें भी सुनी ,परंतु दोनों की मित्रता में कोई अंतर ना हुआ।
दुखों की चादर में पला राज हर चीज को बड़ी बारीकी से देखता और समझने के लिए हर संभव प्रयास करता हूं। यही कारण है कि बहुत ही कम समय में उसे एक अच्छी नौकरी मिल गई ।
, पूरे शहर में उसका बोलबाला हो गया।
तभी एक दिन भोलाराम( बबलू का पिता) उससे एक कागज पर हस्ताक्षर के लिए आए। वहां की व्यवस्था और राज के व्यवहार को देख उन्होंने पीठ थपथपाते हुए कहा—- शाबाश बेटा, सचमुच तुम जैसा बेटा हर किसी का हो।
…… आप ऐसे क्यों बोल रहे हैं चाचा जी।
……. नहीं बेटा, सचमुच इस अवस्था में देख तुम्हें मेरा दिल गदगद हो गया।
……. सच कहूं, तो मेरी प्रेरणा आप लोग हैं। पिता का वह मेहनत और बचपन की यह बात सुनना मैं एक गरीब का बेटा हूं। मेरे साथ किसी अच्छे खानदान के लोग नहीं रह सकते ।चाचा जी, यह सुनना मेरे लिए बहुत बड़ी चुनौती बन गया और मैं दिलो जान से अपनी मेहनत पर आत्म विश्वास से अपने कदम आगे बढ़ाता रहा और आज…..
राज की अप्रत्यक्ष रूप से कही गई यह बात सुन भोलाराम पसीना- पसीना हो गया। उसका अहम उसे धिक्कार रहा था । फिर भी खुद को संभालते हुए वह बोला— सचमुच बेटा, आज तुमने साबित कर दिया कि अपनी मेहनत और आत्मविश्वास के बल पर सब कुछ पाया जा सकता है। इतना क्ह वहां से चले गए…।
— डोली शाह