कविता – माँ जीवन ज्योति
माँ तो है सीप का मोती
माँ हीं नेह का बीज बोती ।
सर पर रख देती है पल्लू
जब- जब धूप तेज होती ।।
माँ ही जीवन की ज्योति
माँ हीं सदा खुशी पिरोती ।
ठंड़ हो या गर्मी माँ बच्चों
को सीने लगाकर सोती ।।
माँ भगवान का रुप होती
माँ संस्कारों की है पोथी ।
इसके चरणों में स्वर्ग पड़ा
माँ बिना दुनिया लगे थोथी ।।
माँ के हाथ की चटनी – रोटी
माँ के हाथ से गूँथी हुई चोटी ।
माँ की हर बात बड़ी निराली
माँ के आगे लगे दुनिया छोटी ।।
— गोपाल कौशल ” भोजवाल”