मुक्तक
उड़ने का ख्वाब रखता हूँ
फटे में टांग नहीं फसाता हूँ।
माँ की परछाई को पाकर
मैं गगन को चूम लेता हूँ ॥
अरदास मै भी रोज करता हूँ
मेरे लिए कुछ नहीं मांगता हूँ ।
माँ की मीठी मुस्कान देखकर
मैं तो चार धाम घूम लेता हूँ ॥
— गोपाल कौशल” भोजवाल”