व्यंग्य – जय माँ शारदे!
किवदंती है कि प्रत्येक मनुष्य के जिह्वाग्र पर चौबीस घंटों की अवधि में सरस्वती एक बार अवश्य बैठती है। मैं ठहरा सरस्वती-पुत्र इसलिए दिनभर में कई बार चढ़ती-उतरती रहती हैं। कई बार तो सो भी जाती हैं और अनेक बार न उतरने के लिए आंदोलन कर देती हैं। कई मिन्नतें करो तब बड़ी मुश्किल से उतरती है। उनकी इस उद्दंडता के कारण प्रियजन मुझसे बातचीत करने से कतराते हैं। मुझे कुटिल दृष्टि से देखते और उपेक्षित – सा व्यवहार करते हैं। पत्नी के नयनों की आग्नेय रश्मि मुझे भस्म करने को तत्पर रहती है।
उस दिन दोपहर में जीभ कुछ भारी सी लगी। समझ गया मातेश्वरी विराजमान हो गयी हैं। कड़कती धूप में मुँह से निकल गया, शाम तक भीषण वर्षा होगी। परिणाम सामने विगत दस दिन से इन्द्रदेव मानों मेरी आज्ञा का पालन करने में लगे हैं। बार-बार चिल्ला रहा हूँ, आधे घंटे में बारिश थम जायेगी। पर इस बार माता जी अंगद के पाँव के समान जम गयी है। अब मैं क्या करूँ? रिश्तेदारों के घर शादी- ब्याह थी। सब मुझे कोस रहे हैं।
लक्ष्मी माता चंचल है। रोकना चाहो तो रुकती नहीं। मैं चाहता हूँ, मेरे घर में सदैव आसन जमाये रहे किंतु बहरी हैं। अनसुनी कर देती हैं। पढ़ी-लिखी कम हैं। मेरे नाम पट पर ‘डॉक्टर’ लिखा देखकर बिदक जाती है। पड़ोसी ने दरवाजे पर छाप रखा है-श्री लक्ष्मी जी सदा सहाय रहें। वे उसकी सहायता करने चली जाती हैं। मैं मन मसोस कर टुकुर-टुकुर देखते रह जाता हूँ। सरस्वती जिद्दी हैं। मन की करवा कर छोड़ती हैं। देखिए ना राम जी को चौदह साल के लिए जंगल भिजवाकर ही दम लिया है। कैकयी आज तक बदनाम है। द्रौपदी को महाभारत युद्ध का निमित्त बना ही दिया है। कलयुग में नेताओं की जीभ पर मैया ने अतिक्रमण क्या किया, पार्षद हो या छुटभैया, मंत्री हो या विधायक सब एक-दूसरे को गरियाते रहते हैं। ये जो देश में भ्रष्ट नेताओं पर ईडी और सीबीआई की कार्यवाही हो रही है ना इसका कारण भी मेरी जीभ पर विराजमान सरस्वती जी हैं। लोग फालतू में मोदी जी को लक्ष्य कर हैं। मुझे याद है पिछले चुनाव में वोटिंग मशीन की बटन दबाते – दबाते मेरी ज़बान से निकल गया था देश के चोरों का बंटाधार हो। ये बात मैंने सारे भ्रष्टारियों के लिए कही थी लेकिन कार्रवाई सिर्फ विपक्ष पर हो रही है। आप तो हंसवाहिनी हो। हंस तो दूध का दूध और पानी का पानी कर देता है। माँ शारदे! ये पक्षपात क्यो? काहे मेरी जिह्वा को बदनाम कर रही हो?
सरस्वती जी धर्मनिरपेक्ष हैं। क्या हिन्दू और क्या मुसलमान! सब पर उनकी कृपा दृष्टि बराबर रहती है। सबकी जीभ पर निरपेक्ष भा से विराजमान होती हैं। आजादी के पहले जिन्ना की जीभ पर जा बैठी। देखिए भारत के दो टुकड़े हो गये। पर माता उन जीभों पर कभी मत बैठना जो भारत के टुकड़े-टुकड़े करने का जाप करते हैं। हाँ माँ! एक निवेदन है। अपना आसन इस देश की निर्धन की जीभ पर भी बनाओ। बेरोजगारों, अशिक्षितों, अनपढ़ो, अबलाओं की जिह्वा पर भी विराजो। उन जीभों पर सदा शोभायमान रहो जो भारत माता की वंदना करते हैं। हे माँ शारदे! उन पाखंडियों की जीभ पर बैठते ही फिसल जाओ जो स्वार्थ की आड़ में देश को लूट रहे हैं। आओ इस वक्त मेरी जिह्वाग्र और कलम की नोंक पर आरूढ़ जाओ और देश की रक्षा करो। जय माँ शारदे!!!
— शरद सुनेरी