सामाजिक

लड़कियाँ लक्ष्मी का रुप होती है, कोई नुमाईश की चीज़ नहीं

कल एक रिश्तेदार से सुना, हम लड़की देखने जा रहे है! मैंने कहा मतलब? तो बोले, “अरे भै बेटे की शादी करनी है तो लड़की देखनी तो पड़ेगी रुप-रंग, बोल-चाल का ढ़ंग, हुनर बहुत कुछ देखना पड़ता है; पास पड़ोस में लड़की के चाल, चलन के बारे में पूछेंगे लड़की का कोई पास्ट भी था या नहीं वगैरह, फिर सब ठीक रहा तो बात आगे बढ़ाएँगे”। मैंने कहा, “फिर लड़की वालें भी तो आएँगे न आपके सुपुत्र के बारे में इन्क्वायरी करने? तो बोले, लड़कों के बारे में इतना कौन जानना चाहता है? अच्छे परिवार से हो और अच्छा कमाता हो इतना काफ़ी है। लड़कों का पास्ट इतना मायने नहीं रखता लड़के है! कर लेते है दिल्लगी। उनकी ये बात सुनकर दु:ख भी हुआ और गुस्सा भी आया कि कितना दोगला है हमारा समाज! लड़कियों को हर तराज़ू में तोल कर ठोक बजाकर देखना चाहते है, पर लड़के उनके लाट साहब।
और तो और लड़की वालें भी जब लड़के वालें देखने आते है, तब लड़की को पार्लर भेजकर नखशिख शोभा की पुतली बनाकर पेश करने में कोई कसर नहीं छोड़ते। साथ में लड़की के अंदर जो हुनर होते है उसे बढ़ा-चढ़ाकर ऐसी प्रशंसा करेंगे कि मानों दुनिया में इस लड़की से ज़्यादा लायक कोई है ही नहीं। पूरा रुप रंग और छवि बदल कर रख देंगे। शादी के बाद लड़की क्या हर रोज़ ऐसी ही दिखने वाली है? और ससुराल जाकर काम भी जो जितना आता होगा उतना ही करेगी न? तो बढ़ा, चढ़ाकर बोलने की बजाय हकीकत में जैसी है वैसी रहने दीजिए न। और लड़के वालें भी वैसी ही स्वीकार कीजिए न। लड़कियों का अपना अस्तित्व होता है, वजूद होता है, सम्मान होता है, गुरुर होता है उसे कायम रहने दीजिए। अगर बहू को कुछ काम नहीं भी आता तो सास माँ बनकर क्यूँ नहीं सिखाती? बात नज़रिये की है, ससुराल वाले बहू में बेटी का रुप देखेंगे तो एक भी कमी नज़र नहीं आएगी। पर ना..सबको बहू तो सर्वगुण संपन्न ही चाहिए। साथ में निष्कलंक, अपना बेटा भले सो चुहिया मारकर हज को चला हो।
इतना करने के बाद भी लड़के वाले कोई न कोई नुक्श निकालकर रिश्ता नकार देते है, तब लड़की के उपर क्या बितती है किसीने सोचा है कभी? खुद को लूज़र महसूस करती है और मैं किसीके लायक नहीं वो बात गहरी चोट पहुंचाती है।
संबध दोनों तरफ़ से जुड़ता है तो फिर कसौटी सिर्फ़ लड़कियों की ही क्यूँ? क्यूँ लड़की वालें लड़के को देखने नहीं जाते? और देखने जाना है की जगह मिलने जाना है, या रिश्ता जोड़ने जाना है जैसे वाक्यों का प्रयोग होना चाहिए। लड़की कोई शोकेस में रखी चीज़ या प्राणी संग्रहालय में कैद कोई जानवर नहीं जो देखने जाओगे। बेशक जानिए, परखिए पर एक सलीके के साथ, सम्मान के साथ। अगर बेटियों को समानता का अधिकार देना है तो इस मानसिकता को बदलना बहुत जरूरी है। बेटियों से ही संसार चलता है और बेटियाँ ही कसौटी की तुला में तोली जाती है।
— भावना ठाकर ‘भावु’

*भावना ठाकर

बेंगलोर