कविता

मौन

मौन की छाती में
छिपा हुआ ज्वालामुखी
बाहर से नहीं दिखता
पर होता है
सीने में असीम आग को समेटे
स्वयं की आग से
स्वयं को जलाता है
पर धीरे धीरे ……
मौन नहीं होता
सदा स्वीकार का लक्षण
बल्कि अक्सर होता है यह अस्वीकार ….
वह समय भी आता है
जब मौन होता है मुखर
अट्टहास ही तो करता है
शिव के तांडव सरिस
महाविनाश लीला
सीने की आग
बिखरकर जला देती है मौन को
मौन सशब्द हो जाता जब
मिट जाता है मौन होने का अभिशाप
हाय! मौन इतना भयंकर !!
— डॉ अवधेश कुमार ‘अवध’

*डॉ. अवधेश कुमार अवध

नाम- डॉ अवधेश कुमार ‘अवध’ पिता- स्व0 शिव कुमार सिंह जन्मतिथि- 15/01/1974 पता- ग्राम व पोस्ट : मैढ़ी जिला- चन्दौली (उ. प्र.) सम्पर्क नं. 919862744237 [email protected] शिक्षा- स्नातकोत्तर: हिन्दी, अर्थशास्त्र बी. टेक. सिविल इंजीनियरिंग, बी. एड. डिप्लोमा: पत्रकारिता, इलेक्ट्रीकल इंजीनियरिंग व्यवसाय- इंजीनियरिंग (मेघालय) प्रभारी- नारासणी साहित्य अकादमी, मेघालय सदस्य-पूर्वोत्तर हिन्दी साहित्य अकादमी प्रकाशन विवरण- विविध पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन नियमित काव्य स्तम्भ- मासिक पत्र ‘निष्ठा’ अभिरुचि- साहित्य पाठ व सृजन