मौन
मौन की छाती में
छिपा हुआ ज्वालामुखी
बाहर से नहीं दिखता
पर होता है
सीने में असीम आग को समेटे
स्वयं की आग से
स्वयं को जलाता है
पर धीरे धीरे ……
मौन नहीं होता
सदा स्वीकार का लक्षण
बल्कि अक्सर होता है यह अस्वीकार ….
वह समय भी आता है
जब मौन होता है मुखर
अट्टहास ही तो करता है
शिव के तांडव सरिस
महाविनाश लीला
सीने की आग
बिखरकर जला देती है मौन को
मौन सशब्द हो जाता जब
मिट जाता है मौन होने का अभिशाप
हाय! मौन इतना भयंकर !!
— डॉ अवधेश कुमार ‘अवध’