गीतिका/ग़ज़ल

चार दिन का मुसाफिर

चार दिन का मुसाफिर लम्बा सफर तेरा।
चला जाएगा बंदे  लगा के  जग से फेरा।
काम, क्रोध,लोभ बस समझे सब मेरा है।
यह सपना है पगले  कुछ भी नहीं तेरा है।
छोड़ दे बंदे मेरा मेरी,दो गज़ ज़मी है तेरी,
जितनी सांसें हैं  लिखी उतना ही  बसेरा।
चार दिन का  मुसाफिर लम्बा सफर तेरा।
चला जाएगा बंदे  लगा के  जग से फेरा।
मुसाफिर सदा तुम  सत्य पथ  अपनाना।
अपने सद्कर्मों से  इस जग को  जगाना।
खाली हाथ आया है खाली हाथ जाएगा,
इक नाम ही बस यहाॅं  रह जाएगा  तेरा।
चार दिन का मुसाफिर लम्बा सफर तेरा।
चला जाएगा बंदे  लगा के  जग से फेरा।
जग घोर अँधेरा है  मन दीप  जला लेना।
निराश जो जिंदगी से  उसे अपना  लेना।
दिन दुखी बेसहारे का  साथी तू  बन जा,
जिंदगी में  आ बन  के तू उन  का  सवेरा।
चार दिन का मुसाफिर  लम्बा सफर तेरा।
चला जाएगा बंदे  लगा के  जग से  फेरा।
— शिव सन्याल

शिव सन्याल

नाम :- शिव सन्याल (शिव राज सन्याल) जन्म तिथि:- 2/4/1956 माता का नाम :-श्रीमती वीरो देवी पिता का नाम:- श्री राम पाल सन्याल स्थान:- राम निवास मकड़ाहन डा.मकड़ाहन तह.ज्वाली जिला कांगड़ा (हि.प्र) 176023 शिक्षा:- इंजीनियरिंग में डिप्लोमा लोक निर्माण विभाग में सेवाएं दे कर सहायक अभियन्ता के पद से रिटायर्ड। प्रस्तुति:- दो काव्य संग्रह प्रकाशित 1) मन तरंग 2)बोल राम राम रे . 3)बज़्म-ए-हिन्द सांझा काव्य संग्रह संपादक आदरणीय निर्मेश त्यागी जी प्रकाशक वर्तमान अंकुर बी-92 सेक्टर-6-नोएडा।हिन्दी और पहाड़ी में अनेक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। Email:. [email protected] M.no. 9418063995