चार दिन का मुसाफिर लम्बा सफर तेरा।
चला जाएगा बंदे लगा के जग से फेरा।
काम, क्रोध,लोभ बस समझे सब मेरा है।
यह सपना है पगले कुछ भी नहीं तेरा है।
छोड़ दे बंदे मेरा मेरी,दो गज़ ज़मी है तेरी,
जितनी सांसें हैं लिखी उतना ही बसेरा।
चार दिन का मुसाफिर लम्बा सफर तेरा।
चला जाएगा बंदे लगा के जग से फेरा।
मुसाफिर सदा तुम सत्य पथ अपनाना।
अपने सद्कर्मों से इस जग को जगाना।
खाली हाथ आया है खाली हाथ जाएगा,
इक नाम ही बस यहाॅं रह जाएगा तेरा।
चार दिन का मुसाफिर लम्बा सफर तेरा।
चला जाएगा बंदे लगा के जग से फेरा।
जग घोर अँधेरा है मन दीप जला लेना।
निराश जो जिंदगी से उसे अपना लेना।
दिन दुखी बेसहारे का साथी तू बन जा,
जिंदगी में आ बन के तू उन का सवेरा।
चार दिन का मुसाफिर लम्बा सफर तेरा।
चला जाएगा बंदे लगा के जग से फेरा।
— शिव सन्याल