हे मानव ! तू आज में “जी”
हे मानव ! तू आज में “जी”
मत कर चिंता दुखी पल की,
मत कर चिंता बीते कल की।
माना जीवन हैं ही दुखों का मेला,
जिनमें तू ही बस ना हैं अकेला।
अपने दुःख के आंसुओं को पी,
हे मानव तू आज में “जी”।।
बीते कल की चिंता में तू,
खुद को दुखी ही पावेगा।
और इस दुख के चक्कर में तू,
अपने आज को ही भूल जवेगा।
अपने दुख के आंसुओं को पी,
हे मानव तू आज में “जी” ।।
जीवन में निरंतर आगे बढ़ने वाले,
बीते कल में नहीं जिया करते।
अपने सपनों को पूरा करने वाले,
दुखों को नहीं गिना करते।
अपने दुख के आंसुओं को पी ,
ही मानव तू आज में “जी”।।
— ख्यालती टंडन