लेख

भूलना अभिशाप या वरदान

मानव जीवन में कुछ भी अभिशाप या वरदान नहीं होता, सब समय स्थिति परिस्थिति और हमारे विचार, लाभ हानि के दृष्टिकोण से ही इसका आंकलन किया जाता है।जो कुछ किसी के लिए वरदान है वहीं किसी के लिए अभिशाप साबित हो जाती है। बहुत बार हमारे दृष्टिकोण पर निर्भर करता है कि हम उसे किस रूप में स्वीकार करते हैं। तो बहुत बार एक ही परिस्थिति अभिशाप होकर भी वरदान भी बन जाती है।
अपना उदाहरण देता हूं।२०२० में पक्षाघात का दंश झेलना पड़ा, जिससे जीवन में बहुत सी दुश्वारियों का आगमन भी स्वमेव हो गया। मगर इसका सकारात्मक परिणाम यह रहा कि लगभग २२ वर्षों से कोमा में जा चुकी  मेरी साहित्यिक यात्रा न केवल पुनः शुरू हो गई, अपितु इतने अल्प समय में मुझे मान सम्मान और उपलब्धियां मेरे लिए भी आश्चर्यचकित करने वाली है,पर सच सामने है।
इसलिए भूलना अभिशाप भी है और वरदान भी है।जीवन बहुत सी बातें हैं जब भूलना हमारे लिए अभिशाप बन जाता है, मगर बहुत बार भूल जाना ही हमारे लिए किसी वरदान जैसा साबित हो जाता है।
जिन बातों का हमारे जीवन में उपयोग होने रहना है,जो हमारे काम आने वाली हैं उसे भूलना अभिशाप है, लेकिन जिनका हमारे जीवन में उपयोग ही नहीं है या जो हमें टीस देने वाली हैं, जिनका याद रहना हमारी सामान्य जिंदगी को पीड़ा देने का काम कर रही हों, उनका भूलना वरदान से कम नहीं है।
शिक्षक पढ़ाना भूल जाते, विद्यार्थी परीक्षा देना भूल जाय, चिकित्सक चिकित्सा करना भूल जाय, अधिवक्ता कानून और पक्ष न्यायालय में रखना भूल जाय, न्यायाधीश निर्णय करना भूल जाय, पुलिस कानून व्यवस्था के पालन की जिम्मेदारी भूल जाये तो यह अभिशाप है। वहीं यदि हम छोटी छोटी और बहुत सी उन बातों को भूल जाते हैं जिससे, हमारे संबंध खराब होने का डर है, ऐसे नुकसान का डर हो जिसकी भरपाई भी नुकसान जैसी हो। जिसकी वजह से हम वो को देने जैसे हालात में भी आ सकते हों, जिसका सुधार ही संभव न हो सकने वाला हो, उसे भूलना किसी वरदान से कम नहीं है।
संक्षेप में यह कहना अतिश्योक्ति न होगा कि सिक्के के दो पहलुओं की तरह भूलने के भी दो पहलू हूं। जो कहीं अभिशाप तो कहीं वरदान भी है।उम्र, याददाश्त और बीमारी में इसका आशय अलग दृष्टिकोण प्रकट करता है।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

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