माँ
चलचित्रों से न आकों,
माँ को यूँ आयोजनों में।
जो स्वयं वसुधा की छाया है,
धरा पर विस्तृत चरणों में।
हृदय को देखो निस्वार्थ भाव से,
माँ की रचना है अनेक रूपों में।
यूँ माँ के भावों को सारगर्भित न करो,
माँ की महिमा है तीनों लोकों में।
कभी चरणों में समर्पित हो जाओ,
तुम माँ की करूणा को पहचानों ।
अद्भुत पीड़ा से भेदकर तुम्हें लाई है,
प्रकृति की इन धाराओं, शिलाओं में। चलचित्रों से न आकों,
तुम माँ को यूँ आयोजनों में।।
— सन्तोषी किमोठी वशिष्ठ