कुछ खर्च किये के कुछ सहेज लिये हम ने।
तेरी चाहत में जो भी पल सौंपे थे मौसम ने।
मेरी ये फितरत ही ऐसी है दोस्तों क्या करूँ,
ठुकराता नही हूँ, जो दर्द दिये शबे गम ने।
आज नही तो कल सुख का सूरज चमकेगा,
जिंदा रखा बरसों हमें, इस झूठे भरम ने।
मैं भी छोड चुका होता गाँव, मगर गया नही,
मेरे कदमों को बाँध रखा है माँ की कसम ने।
हर लम्हाँ उस गज़ल को गुनगुनाते है,
के जिस गज़ल को लबों से छू लिया सनम ने।
— ओमप्रकाश बिन्जवे ‘राजसागर’