ग़ज़ल
अभी हारा नहीं हूं, गर्चे शिकस्ता ही सही।
गर्दिश-ए-वक्त का मारा हूं, गुज़िश्ता ही सही।
शिकस्ता पा ही सही,चल रही माना ये हयात,
मंजिल मिल जाएगी, अभी ये रास्ता ही सही।
ख़्वाहिशें हैं कई,आंखों में कई ख़्वाब भी हैं,
पूरे हो जाएंगे सभी ये,आहिस्ता ही सही।
मौसम-ए-गुल में भी, खिलते नहीं सभी गुल हैं
है नहीं रुत सभी, मधुमास गुलिस्ता ही सही।
कश्ती ने साथ छोड़ा, यूं तूफ़ान की ज़द मे,
हौसला साथ है, गमों से वास्ता ही सही ।
दौर-ए-ग़म बीत ही जाएगा, के बाकी है उम्मीद,
नूर बरसेगा तेरे घर पे आस्तां ही सही।
— पुष्पा ‘स्वाती’