बाल कविता “आम और लीची”
बाल कविता “आम और लीची”
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
—
आम फलों का राजा होता
लीची होती रानी
गुठली ऊपर गूदा होता
छिलका है बेमानी
—
जब बागों में कोयलिया ने,
अपना राग सुनाया
आम और लीची का समझो,
तब मौसम है आया
—
पीले, लाल-हरे रंग पर,
सब ही मोहित हो जाते
ये खट्टे-मीठे फल सबके,
मन को बहुत लुभाते
—
लीची पक जाती है पहले,
आम बाद में आते
बच्चे, बूढ़े-युवा प्यार से,
इनको जमकर खाते
—
ठण्डी छाँव, हवा के झोंके,
अगर चाहते पाना
घर के आँगन में फलवाले,
बिरुए आप लगाना
—