ग़ज़ल
तुम्हें छोड़कर अब तो जाना पड़ेगा
जहां दूसरा अब बसाना पड़ेगा
बहुत सह चुके हैं सितम हम तुम्हारे
तुम्हारा भी अब दिल दुखाना पड़ेगा
कहाँ तक जियेगें तुम्हारे सहारे
सभी बोझ खुद ही उठाना पड़ेगा
नही जिन्दगी में गमों के सिवा कुछ
किसी के लिए मुस्कुराना पड़ेगा
नही साथ दोगे अगर तुम हमारा
अकेले समय तब बिताना पड़ेगा
अना वो मेरी रोंदना चाहते हैं
कहें के तुम्हे सिर झुकाना पड़ेगा
मिटा न सकोगे ए हाकिम हमें तुम
हमें तख्त को अब हिलाना पड़ेगा
चढ़ा है मुखौटा शक्ल पे तुम्हारी
हमें आइना अब दिखाना पड़ेगा
— शालिनी शर्मा