कौए का जाल
कुहू कुहू कोयल की सुनकर
कौआ रह गया जल भुनकर।
एकदिन उसने जाल बिछाया
जाकर कोयल को उकसाया।
उससे करने लगा लड़ाई
खरी-खोटी फिर उसे सुनाई।
कोयल फंसी जाल में भोली
कौए की भाषा में बोली।
तू-तू मैं-मैं चली देर तक
दोनों में रहा न कोई फर्क।
कौए ने खेला ऐसा दांव
कोयल बोली कांव कांव।
जब कोयल की मम्मी आई
कोयल को फटकार लगाई।
दुष्टों की बातों में आकर
बोल पड़ी अस्तित्व भूलाकर।
जो मूर्ख से बहस करोगी
अपने गुण सारे खो दोगी।
अब कोयल को समझ में आया
कौए ने जो जाल बिछाया ।
कुहू कुहू गीत सुनाकर
उड़ गई कोयल पर फैलाकर।