नवगीत
धोए जननी
सुत की सुथरी
मैली गीली कथरी।
सही वेदना
नित नौ मासा
मन में फूली आशा।
एक एक पल
जीना दूभर
ऊपर- ऊपर श्वासा।।
उपालंभ क्यों
छाँव बनी माँ छतरी।
आई घर में
नई ब्याहुली
चूल्हा अलग जलाए।
लड़े सास से
खूसट बोले
नेंक न वधू लजाए।।
कहे ससुर क्या
आँगन में जा पसरी।
छोटी चादर
लंबी टाँगें
बाहर पाँव उघारे।
काजल बिंदिया
ला हरजाई
रोवें बारे -बारे।।
किसकी ताकत
तिया सँवारे, बिगरी।
टेढ़ी हो जो
लिपि ललाट की
आती कुलटा नारी।
सास ससुर पति
रोते तीनों
जीवन की लाचारी।
चमक चाँदनी
बनती नागिन बिजुरी।
— डॉ.भगवत स्वरूप ‘शुभम्’