कहानी

कहानी – पत्ता गोभी

आज से लगभग पचास वर्ष पहले की बात है । कोटधार की तलहटी में बसे एक गांव में एक अल्हड़ कमला नाम की युवती जिसने अभी यौवन की दहलीज पर पांव रखा ही था, अपने परिवार के साथ रहती थी।कमला गांव में पली बढ़ी व गांव के ही परिवेश में बड़ी हुई थी। उस समय बेटियों को तो पढाने का रिवाज ही नहीं था तथा स्कूल भी बहुत दूर दूर होते थे अतः न केवल लड़कियां बल्कि लड़के भी कम ही पढ़ पाते थे। कमला के पिता बहुत गरीब परिवार से संबंध रखते थे।थोड़ी बहुत खेती बाड़ी थी ।घर में तीन भैंसों के साथ साथ खेती के लिए दो बैल,भेड़ बकरियां भी पाल रखी थी ।दूध व कृषि उत्पाद बेच कर व दिहाड़ी मजदूरी से हो रही आमदनी से किसी तरह घर का खर्च चल रहा था।कमला के दो छोटे भाई भी थे ।क्योंकि उस ज़माने में स्कूल घर से  बहुत दूर था तथा आज की तरह आवागमन के साधन उपलब्ध नहीं थे अतः कमला को स्कूल नहीं भेजा गया। कमला पूरा दिन पशुओं के साथ व्यस्त रहती थी।घर के सारे कामों जैसे खाना बनाना,सिलाई कढ़ाई,कृषि का काम आदि में वह दक्ष थी।
उस समय लड़कियों की शादी करना काफी कठिन था।दहेज के बिना कोई शादी नहीं होती थी।गरीबी अधिक थी अतः लोगों को बच्चों की शादियों के लिए साहूकारों से पैसे की व्यवस्था कर के शादी करनी पड़ती थी।समाज में दहेज प्रथा इतनी बलबती थी कि लोकलाज के लिए गरीब से गरीब आदमी को भी दहेज देने के लिए साहूकार के दरवाजे पर दस्तक देनी ही पड़ती थी। जो एक बार उसके चंगुल में फंस जाता था, पूरी उम्र साहूकार का पैसा लौटाने में ही बीत जाती थी। साहूकार का ब्याज कम नहीं होता था लेकिन उसकी बही के पन्ने ब्याज की प्रविष्ठियों से लगातार बढ़ते जाते थे। इस तरह पीढ़ी दर पीढ़ी कर्जे में ही पैदा होती थी और कर्जे में ही मर जाती थी ।
कमला के पिता ने कमला के लिए एक रिश्ता ढूंढा तथा उसकी शादी की तिथि निर्धारित कर दी। उसको अब पैसे की चिंता सताने लगी क्योंकि घर में पैसे की तंगी थी।उसने अपनी पत्नी से बात की तथा उसके पास जो थोड़े गहने थे उनको देने के लिए मना लिया।उन गहनों को लेकर वह साहूकार के पास गया।साहूकार ने गहने गिरवी रख कर उसे दस हज़ार रुपये कर्ज दे दिया । निर्धारित दिन बारात आई। बारात का अपनी सामर्थ्य के अनुसार कमला के पिता ने स्वागत किया व जो भी दहेज बनता था उसे देकर बेटी को विदा किया। बहुत अच्छे तरीके से शादी संपन्न हो गई। इसे कमला का सौभाग्य कहें या परिवार की खुशकिस्मती कहें कि कमला की शादी जिस घर में हुई वह सब लोग बहुत अच्छे थे। कमला का ससुराल भी उसके मायके से लगभग 7 किलोमीटर दूर था तथा आना जाना पैदल ही होता था । कमला घर के काम में निपुण थी अतः ससुराल में उसको खूब इज्जत व सम्मान मिला। धीरे-धीरे समय बीतता गया तथा कमला के दो बेटियां और एक बेटा हो गए। पूरा परिवार बहुत खुश था। कमला का पति  जिन्दू भी ज़्यादा पढ़ा लिखा नहीं था। वह काफी समय से लुधियाना में एक कम्पनी में कार्य करता था। जिन्दू के गांव में ही एक प्राथमिक पाठशाला खुल गई थी जिससे अब बच्चों को विशेषकर लड़कियों को पढ़ने का मौका मिल गया था।
जिन्दू ने भी अपनी बड़ी बेटी का स्कूल में दाखिला करवा दिया।बेटी की छुट्टियों में जिन्दू अपने परिवार को अपने साथ कुछ दिन के लिए लुधियाना ले गया।बच्चों के साथ साथ कमला भी बहुत खुश थी क्योंकि वह पहली बार घर से बाहर जा रही थी और वह भी लुधियाना जैसे बड़े शहर में।सुबह छः बजे जिन्दू बच्चों के साथ सरकारी बस में घर से निकल पड़ा।रास्ते में जिन्दू  बच्चों व कमला को खाने के लिए कुछ न कुछ खिलाता रहा जिसे सब बड़े मजे से खा रहे थे तथा यात्रा का आनंद ले रहे थे।शाम को दिन ढलते ढलते  सब लुधियाना पहुंच गए।जिन्दू का एक कमरे का मकान था साथ में छोटी सी रसोई थी।कमला व बच्चों ने पहली बार कोई शहर देखा और वह भी बड़ा शहर लुधियाना । हर तरफ लोगों की भीड़ व गाड़ियां ही गाड़ियां देख कर उनकी आंखें खुली की खुली रह गई। जिन्दू ने बस स्टैंड से रिक्शा पकड़ा और अपने किराये के कमरे की ओर बच्चों समेत चल पड़ा। रास्ते में ट्रेन का फाटक था जहाँ गाड़ियों की लंबी लाइन लगी हुई थी। ट्रेन आने पर कमला व बच्चे बहुत उत्साहित थे क्योंकि उन्होंने जिंदगी में पहली बार ट्रेन देखी थी। जैसे ही ट्रेन धड़ाधड़ करती सीटी बजाती फाटक से निकली,बच्चे तो तालियां बजाकर जोर जोर से खुशी में चिल्लाने लगे पड़े।थोड़ी देर में सब अपने कमरे पर पहुंच गए।कमला गांव में लकड़ियां जलाकर ही चूल्हे पर खाना बनाती थी लेकिन यहां जिंदू ने मिट्टी के तेल का स्टोव रखा हुआ था। अब कमला के लिए समस्या यही थी कि स्टोव कैसे जलाया जाए। जिन्दू ने उसे स्टोव जला कर दिया तब उसने सबके लिए खाना बनाया । दिन के लम्बे सफर से थके हारे सब ने खाना खाया और सो गए ।अगले दिन रविवार था अतः जिंदू ने बच्चों के साथ बाहर घूमने का प्रोग्राम बनाया तथा उन्हें घंटाघर घुमाने ले गया ।बच्चे नई नई चीजें देखकर बहुत खुश थे।जिन्दू ने बच्चों के लिए कुछ खिलौने खरीदे तथा गन्ने का जूस भी पिलाया। कमला घर के कामकाज में बहुत चुस्त थी लेकिन शहरी माहौल से बिल्कुल अनजान थी।गांव की भोली भाली कमला तो शहर में बड़ी बड़ी बिल्डिंगें ,ट्रैफिक देख कर जैसे अचंभित थी।सड़क पार करना भी उसके लिए आफत से कम नहीं था।उन्हें घर से आये लगभग पन्द्रह दिन हो गए थे।समय कैसे बीत रहा था पता ही नहीं चल रहा था।उसने स्टोव जलाना सीख लिया था।
एक दिन की बात है कमला ने सुबह उठकर नहा धोकर खाना बनाया तथा जिन्दू के लिए टिफिन में खाना पैक करके दिया।बच्चों को भी दूध पिलाकर व खाना खिलाकर थोड़ी देर सुस्ताने लगी।तभी बच्चे कुछ खाने की जिद करने लगे।कमला ने उनके लिए दलिया बनाया थोड़ा सा खुद भी खाया तथा बच्चों को भी खिलाया।अब दोपहर हो चली थी तथा उसे रात के लिए खाना बनाने की चिंता सताने लगी।तभी उसे ख्याल आया कि जिन्दू कल बाजार से कुछ सब्जी लेकर आया है।उसने रसोई में देखा कि एक थैले में हरे रंग की दो गोल आकार की बाल की तरह दिखने वाली कोई चीज़ पड़ी है।वास्तव में वह बन्द गोभी थी।कमला ने इससे पहले कभी बन्द गोभी नहीं देखी थी। उसने सोचा जैसे कद्दू,घीया के छिलके उतार कर सब्जी बनती है उसी तरह यह सब्जी(बंद गोभी) भी बनती होगी।उसने चाकू लिया और छिलके उतारना शुरू कर दिए।बन्द गोभी का एक पत्ता जब वह निकालती तो दूसरा पत्ता भी उसी तरह का आगे निकल आता था।उसने सोचा था कि बन्द बाल के अंदर कोई सब्जी निकलेगी लेकिन एक एक पत्ता निकालते निकालते उसने सारी बन्द गोभी के पत्तों का ढेर लगा दिया।बन्द गोभी के अंदर से न कुछ निकलना था न ही कुछ निकला।कमला परेशान हो गई थी कि पूरी सब्जी में कुछ नहीं निकला अब क्या सब्जी बनाऊं? उसने सारे पतों को उठाया और क्वार्टर से थोड़ी दूरी पर रखे कुड़ेदान में डाल दिया।उसने रात के लिय दाल बना दी।रात को जब जिन्दू खाना खाने बैठा तो उसने थाली में दाल परोस दी।जिन्दू ने थाली में जब दाल देखी तो उसने पूछा कि वह तो सब्जी भी लाया था, सब्जी क्यों नहीं बनाई?इस पर कमला ने गुस्सा होकर कहा कि आप को सब्जी का भी पता नहीं चलता? कैसी सब्जी लाये थे।जो सब्जी आप लाये थे वह खराब हो गई थी उसमें से तो कुछ नहीं निकला। वह मासूम सी बनी कह रही थी कि उसमें तो छिलके पर छिलका ही निकला,सब्जी तो कुछ नहीं।आपने तो पैसे बर्बाद कर दिए। जिन्दू ने पूछा कि सब्जी रखी कहां है।कमला ने बड़ी मासूमियत से जबाब दिया कि उसे तो उसने कूड़ेदान में डाल दिया है अब छिलकों का उसने क्या करना था।जिन्दू को उसकी मासूमियत पर बहुत हंसी आई।वह जोर जोर से हंसने लगा तथा हंसते हंसते लोट पोट हो गया।बच्चे भी उसे हंसता देख जोर जोर से हंसने लगे।उसे हंसता देख कर कमला कुछ झेंप से गई तथा पूछा कि इसमें हंसने की क्या बात है।जब सब्जी निकली ही नहीं तो छिलके तो फैंकने ही थे।थोड़ी देर के बाद जब जिन्दू की हंसी रुकी तो उसने बताया कि इस सब्जी को बंद गोभी कहते हैं ।इसमें छिलके नहीं होते सारी सब्जी ही होती है।गलती मेरी ही है क्योंकि मैंने तुम्हें बताया ही नहीं कि इसकी सब्जी कैसे बनती है।इस पर दोनों जोर जोर से हंसने लगे। कमला को उम्र भर वह पत्ता गोभी की सब्जी नहीं भूली।अब घर में जब कभी भी पत्ता गोभी बनती जिन्दू कमला को लुधियाना की याद दिलाता और सब उन क्षणों को याद करके जोर से हंसना शुरू कर देते।
— रवींद्र कुमार शर्मा

*रवींद्र कुमार शर्मा

घुमारवीं जिला बिलासपुर हि प्र