कविता

अपनी सुरक्षा खुद करो

समय के साथ चलना सीखो
अपनी सुरक्षा खुद से करना सीखो,
औरों के भरोसे रहकर सुरक्षित रह सकोगे कब तक?
इस बात का भी विचार करना सीखो।
अब तक जिन्होंने ने भी इतिहास रचा है
अधिसंख्य वे बेबस लाचार कमजोर,निर्धन ही तो थे,
पर उन्होंने अपनी जिजीविषा से खुद को मजबूत किया,
औरों की ओर नहीं निहारा
और चल पड़े एकला अपने लक्ष्य की ओर
न अकेलेपन की डर, न संसाधनों की चिंता
पर मन में थी बस हिमालय सी दृढ़ता
और सफलता का नया इतिहास रच
खुद को अमर कर डाला।
तभी तो आज सैकड़ों हजारों साल बाद भी
हम याद करते, पूजते हैं उन्हें,
उनके पद चिन्हों का अनुसरण करो
जो उन्होंने दिया हमें कम से कम उसी का सम्मान करो।
समय बदल रहा है दुनिया कहां से कहां जा रही है
हमारी छुई मुई सी बहन बेटियां
खुद से फौलाद बन झंडे गाड़ रही हैं
अपनी ओर उठने वाली बुरी नजरों की आंखों में
आंखें डालकर टकराने लगी हैं
हमारे आपके लिए भी वे नजीर बन रही हैं।
अपनी सुरक्षा के लिए खुद से कमर कस रही हैं।
क्योंकि आज की यही ज़रुरत है
हमारे,आपके लिए ही नहीं हम सबके लिए यह जरूरी है
इसके लिए हमें अपने आत्मबल की जरूरत है
अपनी सुरक्षा अपने आप से करना हमें सबसे जरूरी है।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

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