कविता

/ चलो .. सीख मिलती है..चलना कैसे ?/

चलते हैं लोग दुनिया में
कभी तेज, कभी चुस्त
कभी सीमाओं के अंदर,
कभी सीमाओं को पारकर
जो अंधेरे में होते हैं,
कोई सहारा नहीं जिसका
वे चलते हैं धीरे – धीरे,
सब लोग चलते हैं रोशनी में
लेकिन बहुत कम लोग
मजबूरी से रात में भी चलते हैं
भेदों को पारकर आगे बढ़ते हैं,
धूप होता है, बारिश होती है
जीवन में बसंत की शोभा होती है,
विकलता को पारकर कुछ लोग
एक भी कदम नहीं ले पाते,
जिनके पास विशाल दृष्टि होती है
वे भविष्य में दूर – दूर तक पाँव रख लेते हैं
जो आजाद होते हैं स्वयं चलने में
लोक हित में रास्ता तय करते हैं
वे अपना कुछ ईजाद़ कर पाते हैं
चलो, रुको मत, सीख मिलती है
हमें हर कदम में, चलना कैसे ?

पी. रवींद्रनाथ

ओहदा : पाठशाला सहायक (हिंदी), शैक्षिक योग्यताएँ : एम .ए .(हिंदी,अंग्रेजी)., एम.फिल (हिंदी), सेट, पी.एच.डी. शोधार्थी एस.वी.यूनिवर्सिटी तिरूपति। कार्यस्थान। : जिला परिषत् उन्नत पाठशाला, वेंकटराजु पल्ले, चिट्वेल मंडल कड़पा जिला ,आँ.प्र.516110 प्रकाशित कृतियाँ : वेदना के शूल कविता संग्रह। विभिन्न पत्रिकाओं में दस से अधिक आलेख । प्रवृत्ति : कविता ,कहानी लिखना, तेलुगु और हिंदी में । डॉ.सर्वेपल्लि राधाकृष्णन राष्ट्रीय उत्तम अध्यापक पुरस्कार प्राप्त एवं नेशनल एक्शलेन्सी अवार्ड। वेदना के शूल कविता संग्रह के लिए सूरजपाल साहित्य सम्मान।