‘हिन्दी पत्रकारिता दिवस’ पर ‘सर्जनपीठ’ की परिचर्चा
‘हिन्दीपत्रकारिता-दिवस’ के उपलक्ष्य मे ‘सर्जनपीठ’ की ओर से ‘मीडिया-चरित्र और लोकतन्त्र’-विषयक एक परिचर्चा का आयोजन २९ मई को ‘भारती भवन’, मालवीयनगर, प्रयागराज के पुस्तकालय के सभागार मे किया गया था।
साहित्यकार शाम्भवी ने कहा, “भारत मे ही नहीं, पूरी दुनिया मे आज मीडिया लोकतंत्र के चौथे शक्तिशाली स्तम्भ के रूप मे उभरा है। उसे स्वतंत्र अधिकार प्राप्त तो है; लेकिन लोकतंत्र की रक्षा तभी होगी जब मीडिया अपने कर्त्तव्यों को रचनात्मक तरीक़े से पालन करने का स्वभाव बना ले।”
प्राध्यापक डॉ० शीलप्रिय त्रिपाठी ने बताया, “मनुष्य को अपना मानवीय गुण नहीं छोड़ना चाहिए। यही बात पत्रकारिता पर भी लागू होता है। आप आसानी से कह सकते हैं कि आज की पत्रकारिता मिशन नहीं रही, जो आज़ादी के दौर में थी, जबकि पत्रकारिता-कर्म मिशनरी ही है। अगर आप मिशनरी होने का जोख़िम नहीं ले सकते तो पत्रकारिता में क्यों हैं?
आयोजक भाषाविज्ञानी और मीडियाध्ययन-विशेषज्ञ आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने कहा, “आज जिस तरह से ‘मुक्त मीडिया’ (सोसल मीडिया) के नाना सूत्र-स्रोत लोकतन्त्र और सरकार के पक्ष और विपक्ष मे ताल ठोंकते लक्षित हो रहे हैं, उससे समाज बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है। मीडियाकर्म के नाम पर एक ऐसा स्वयम्भू वर्ग सामने आ चुका है, जो निर्धारित आचार संहिता के मानकों की अनदेखी करते हुए, कहीं भी पहुँचकर स्वेच्छाचारिता का परिचय देता आ रहा है। तथाकथित ‘यूट्यूबरों’ की बाढ़-सी आ गयी है, जो मनबढ़ दिख रहे हैं।”
कवयित्री चेतनाप्रकाश ‘चितेरी’ ने कहा,”लोकतन्त्र को जीवित रखने के लिए मीडिया एक महत्त्वपूर्ण स्तम्भ है। भारतीय सामाजिक परिवेश में लोकतान्त्रिक व्यवस्था के बावजूद अनगिनत घटनाएंँ परोक्ष वा प्रत्यक्ष रूप से घटित होती रहती हैं, जिसका मीडिया-द्वारा ही मूल्यांकन किया जाता रहा है; क्योंकि मीडिया के हस्तक्षेप से ही लोकतान्त्रिक व्यवस्था कलंकित होने से बच पायी है। हाँ, यह कहना भी अतिशयोक्ति नहीं होगा कि मीडिया को अपनी ज़िम्मादारी निस्स्वार्थ भाव से जनसामान्य के हित को सर्वोपरि रखकर ही निभानी होगी, ताकि भारतीय लोकतन्त्र की जड़ें और दृढ़ हो सकें।”
एंग्लो बंगाली इण्टर कॉलेज मे प्रवक्ता और लेखक अजय मालवीय ने बताया, “ऐसा महसूस होता है कि स्वतंत्र भारत में आज का पत्रकार मुक्त रूप से विचार प्रकट करने में असहज महसूस कर रहा है। यथार्थ को समाज में मीडिया के माध्यम से प्रस्तुत करना, एक पत्रकार का परम कर्त्तव्य होना चाहिए।”
इलाहाबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय मे हिन्दी-विभाग के प्राध्यापक डॉ० शिवप्रसाद शुक्ल ने कहा, “मीडिया का चरित्र आदिकाल से लेकर अब तक संदिग्ध रहा है। मीडिया एवं लोकतंत्र “जिसकी लाठी उसकी भैंस” के पर्याय बन गये हैं, इसीलिए तटस्थ जननेता और पत्रकार का अभाव नारद से लेकर अब तक दिखायी दे रहा है।”
वरिष्ठ पत्रकार और कवयित्री उर्वशी उपाध्याय ने कहा, “इलेक्ट्रॉनिक चैनल एक ही मुद्दे को कई दिनों तक लगातार घसीटते हुए, जन-सरोकार के कई अन्य मुद्दों को नज़रअंदाज़ कर देते हैं। सोशल मीडिया पर एक ही मुद्दे को कई कोण से दिखाया जाता है। कई बार ऐसी स्थिति एक उन्माद की शक़्ल ले लेती है। इन दोनों के मुक़ाबले प्रिंट मीडिया की भूमिका अधिक विश्वसनीय हो सकती है; लेकिन कई बार प्रेस-विज्ञप्ति पर आधारित समाचार-लेखन हास्यास्पद स्थिति पैदा कर देते हैं।”
समारोह की अध्यक्ष सी० एम० पी० डिग्री कॉलेज मे हिन्दीविभाग की प्राध्यापक डॉ० सरोज सिंह ने बताया, “मीडिया वह इंजन है, जो सत्य, न्याय तथा समानता की तलाश के साथ लोकतंत्र को आगे बढ़ाता है। आज सूचना-प्रौद्योगिकी के युग में मीडिया-परिदृश्य से उत्पन्न चुनौतियों के निबटारे-हेतु पत्रकारों को अपनी रिपोर्टिंग में निष्पक्षता और सटीकता के उत्तरदायित्व का निर्वहण भलीभाँति करना होगा।”
मेरी लुकस स्कूल ऐण्ड इण्टर कॉलेज मे हिन्दी-प्रवक्ता डॉ० धारवेन्द्रप्रताप त्रिपाठी ने कहा, “सत्ता से सवाल पूछना और जनता के हितों को सर्वोपरि मानना, मीडिया का मुख्य दायित्व होता है । मीडिया समाज के लिए हमेशा एक सहयोगात्मक, शुभचिंतक तथा दिशानिर्देशक होता है, इसीलिए आज के दौर में मीडिया की भूमिका और अधिक महत्त्वपूर्ण हो गयी है।”
प्राचार्य डॉ० पूर्णिमा मालवीय ने कहा, “मीडिया को चाहिए कि वह सत्यसंधान करते हुए वास्तविकता का उद्घाटन करे। वह किसी दबाव मे काम न करे।”
वरिष्ठ रेडियो-पत्रकार तौक़ीर अहमद ख़ाँ ने कहा, ”सोसल मीडिया ने क्रान्ति लाया है। आज कोई अधिकारी गन्दा काम करके बच नहीं पायेगा; क्योंकि हर हाथ मे मोबाइल आ चुका है। फोटो खींचा और समाज मे पहुँचा दिया।”
वरिष्ठ मीडिया-छायाकार अरविन्द मालवीय ने कहा,” फोटो पत्रकारिता वस्तुस्थित को प्रकट करती है; आज वह स्थिति नहीं दिखती, जबकि फ़ोटो-पत्रकारिता मे वह ताक़त है, जो व्यवस्था को हिला दे।”
डॉ० मोतीलाल मौर्य ने कहा, “सभी प्रकार के दबाव से पत्रकार भी घिरा हुआ है। पत्रकार को जीने देना चाहिए। सब कुछ पत्रकारों पर थोपना उचित नहीं है।”
परिचर्चा का संचालन आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने किया। डॉ० धारवेन्द्रप्रताप त्रिपाठी ने कृतज्ञता-ज्ञापन किया।