छद्म सद्भाव
छपास की ललक तो मोहनलाल जी में शुरू से ही थी, पर अच्छे लेखन के बावजूद उनका लेखन फेसबुक या स्थानीय पत्रिकाओं से ऊपर न पहुंच पाया था। आज उनके लिखे हुए संस्मरण को लगभग 400 लाइक्स मिल चुके थे।
इस पर उनके दोस्त रोहन जी उन्हें बधाई देते हुए बोले, “भाई, बहुत बढ़िया संस्मरण लिखा है। बस इसमें मदद करने वाले पात्र का नाम अगर महुआ की जगह अब्दुल लिख देते, तो न केवल लोगों के बीच सद्भावना संदेश जाता बल्कि पूरे विश्वास से यह कह सकता हूं कि आप राष्टीय समाचार पत्र में भी छप जाते।”
‘आपका मतलब है संस्मरण में भी “घोटाला”…’ मुस्कुराते हुए मोहनलाल जी बोले, ‘समझ आ गया भाई कि आप इतना “बिकते” क्यों हैं?’
अंजु गुप्ता ‘अक्षरा’