ग़ज़ल
खुशबू का भी नशा मीठी शराब जैसा है।
वो हाथ चूम के देखो गुलाब जैसा है।
पढ़ कर पता चले है राज़ ज़िदगी के तब,
हर इक शख़्स यहां लगता किताब जैसा है।
ताज़ा तरीन सुंदर धूप में नहाया हो,
खिलता हुआ कमल बिल्कुल जनाब जैसा है।
कब ढ़ल गया वक़्त चलते बहाव में बह कर,
पानी का बुलबुला तेरे शबाब जैसा है।
रौशन हुआ अंधेरा सुबह की कली महकी,
दिलबर का मान जाना आफताब जैसा है।
तू भी न रोक पाया मैं भी रोक ना पाया,
तेरा जवाब भी मेरे जवाब जैसा है।
आंखें खुली जो ‘बालम’ तो किधर गया वो पल,
यह आदमी का जीवन भी तो ख्वाब जैसा है।
— बलविंदर बालम