लघुकथा – कच्चा प्यार
“अरे अमित तुम अचानक कैसे?और तुम्हारे साथ ये लड़की कौन है?” अमित के मामा ने अचानक हज़ार किलोमीटर दूर रहने वाले अमित के अपने घर पहुंचने पर सवाल किया।
“मामाजी–मामाजी! वो-वो-वो बात यह है कि मैं इस लड़की निशा से प्यार करता हूं, हम शादी करना चाहते हैं,और हम भागकर बिना मम्मी-पापा को बताये यहां आपके पास आपसे मदद की उम्मीद लेकर पहुंचे हैं। प्लीज मामाजी मदद कीजिए न।”
“अच्छा तो यह बात है। तुम दोनों एक-दूसरे से प्यार तो करते हो?”
“बिलकुल”
“एक-दूसरे से शादी करना चाहते हो? “
“जी, बिलकुल”
“अभी तुम लोगों की उम्र क्या है? “
“मैं इक्कीस वर्ष का और यह अठारह वर्ष की “
“पर अभी तो तुम पढ़ ही रहे हो?”
“जी बिलकुल”
“पर अगर मैंने तुम लोगों की शादी करा दी, तो तुम लोगों की गुज़र-बसर कैसे होगी?
“कोई न कोई नौकरी कर लूंगा “
“मतलब,अभी कोई जॉब नहीं तुम्हारे पास? “
“जी नहीं। “
“देखो अमित तुम लोगों का प्यार अभी कच्चा है। वह एक विपरीतलिंगी आकर्षण के सिवाय और कुछ नहीं है। अभी तुम लोग वापस जाओ, अपनी पढ़ाई ज़ारी रखो। पढ़ाई के बाद नौकरी करो। धैर्य के साथ कच्चे प्यार को पक्का करो,और फिर ताल-ठोककर शादी करो। तब अगर तुम लोगों के पेरेंट्स नहीं माने तब तुम लोगों की मदद मैं करूंगा। बस पहले तुम अपने कच्चे प्यार को पकाओ,जाओ।”
अमित और निशा को अपने कच्चे प्यार की सच्चाई समझ में आ चुकी थी,और वे वापस लौटने की तैयारी करने में जुट गये थे।
— प्रो (डॉ) शरद नारायण खरे