सुख में सभी साथ चलते हैं
मुझे भूलती नहीं लोगों से वह मुलाकातें
याद रहती हैं मुझे उनकी छोटी छोटी बातें
भूलना भी चाहूँ तो भूल नहीं पाता हूँ
चोट करती हैं दिल पर जैसे हों सर्द रातें
ज़माने भर को हमने देखा और परखा है
कोसों दूर हकीकत से होती हैं ज़माने की बातें
मुंह पर बहुत मीठापन लिए घूमते हैं लोग
पीठ पीछे करते हैं न जाने क्या क्या बातें
बदलते समय के साथ बदल जाते हैं लोग
समय अच्छा हो तो चलती हैं साथ ज़मातें
सत्ता पास हो तो खिंचे चले आते हैं लोग
जमघट लगा रहता है जैसे कई बारातें
इश्क में डूबे लोगों को न दिन में चैन मिलता है
इक पल भी साल लगता है कटती नहीं है रातें
झूठ बोलने वालों को न जाने क्यों पसंद करते हैं
सच्च बोलने वालों की चुभती हैं सबको बातें
भुलाये नहीं भूलते वह बिछुड़ कर जाने वाले
याद आते हैं वह साथ बीते पल और मुलाकातें
सुख में सभी साथ चलते है जैसे गुड़ पर मक्खी
दुख में न जाने कहाँ गुम हो जाती हैं वह लोगों की ज़मातें
— रवींद्र कुमार शर्मा