दोहा गीतिका – कसें कसौटी सत्य की
कसें कसौटी सत्य की,हीरा हो या काँच।
भ्रम में तेरे नेत्र हैं ,पता करें यह साँच।।
जीव योनि-यात्रा करे, चल चौरासी लाख,
तपता है वह नर्क में,जल रौरव की आँच।
बचपन बीता खेल में,यौवन में रत काम,
वृद्ध देह असमर्थ है,भरता वृथा कुलाँच।
पोथी गीता वेद की, घर में सजीं अनेक,
जीवन यों ही बीतता,सका न पल को बाँच।
यात्रा से पहले नहीं,परखी राह – कुराह,
कैसा तव गंतव्य है,नहीं सका नर जाँच।
दुर्जन की पहचान है,चले सदा बदराह,
जो चलता सन्मार्ग में,वही लगाते टाँच।
‘शुभम्’शोध अपना करें, अंतर्मन हे मीत!
श्रेष्ठ सुजन मिलते कहाँ, मिलें चार या पाँच।
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम्’