बाल गीतिका – सुराही
लाल रंग की सुघर सुराही।
मिट्टी से ये बनी सुराही।।
शीतल जल दे प्यास बुझाती,
अपनापन दे नित्य सुराही।
गर्मी में सब इसे चाहते,
सौंधी दे सद गंध सुराही।
कुम्भकार का श्रम रँग लाया,
तब घर लाई नीर सुराही।
माटी कूट – पीस कर छानी,
बनी चाक पर गोल सुराही।
गर्दन सुघर पेट है फूला,
पकी अवा में लाल सुराही।
देशी फ्रिज है ‘शुभम्’तुम्हारा,
किसे न भाती सजल सुराही।
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम्’