सामाजिक

भारतीय संस्कृति में पिता का अतुलनीय स्थान

हजारों वर्षों से भारतीय संस्कृति में पिता का स्थान आकाश से ऊंचा है जिसमें सभी लोकों के देवता निवास करते हैं जिसे हमारे ग्रंथों महापुराणों में श्लोकों के द्वारा बताया गया है।
पिता धर्मः पिता स्वर्गः पिता हि परमं तपः।पितरि प्रीतिमापन्ने प्रीयन्ते सर्वदेवता।।पिता ही धर्म है, पिता ही स्वर्ग है और पिता ही सबसे श्रेष्ठ तपस्या है। पिता के प्रसन्न हो जाने पर सारे देवता प्रसन्न हो जाते हैं।पिता के महत्व को प्रदर्शित करता हुआ यह बहुत महत्वपूर्ण व सूंदर मंत्र है इसलिए अनेक पुराणों व् ग्रंथों में इसका उल्लेख किया गया है।
पितृभिः ताड़ितः पुत्रः शिष्यस्तु गुरुशिक्षितःधनाहतं  स्वर्ण च जायते जनमण्डनम। श्लोक-पिता द्वारा डांटा गया पुत्र, गुरु के द्वारा शिक्षित किया गया शिष्य, सुनार के द्वारा हथौड़े से पीटा गया सोना, ये सब आभूषण ही बनते हैं।
 पितृन्नमस्येदिवि ये च मूर्त्ताः स्वधाभुजः काम्यफलाभिसन्धौ ॥प्रदानशक्ताः सकलेप्सितानां विमुक्तिदा येऽनभिसंहितेषु ॥
मैं अपने पिता को नमन करता हूँ जो सभी देवताओं का प्रत्यक्ष रूप हैं, जो मेरी सभी आकांक्षाओं को पूर्ण करते हैं। मेरे पिता मेरे हर संकल्प को सिद्ध करने में मेरे आदर्श हैं, जो मेरी कठिनाइयों एवं चिंताओं से मुझे मुक्त करते हैं  ऐसे प्रभु के रूप में विघ्नहर्ता को प्रणाम करता हूँ। ऐसे हमारे श्लोक सदियों पूर्व लिखें हुए हैं जिनसे यह विदित होता है कि भारत में पिता का स्थान देवता तुल्य है।
वर्तमान परिपेक्ष में भारतीय संस्कृति, ग्रंथों महापुराणों में लिखे वचनों के अनुसार मनाने का संकल्प लेना होगा न कि पाश्चात्य शैली से मनाने की बात होनी चाहिए!! क्योंकि हम अपने पिताजी, अब्बा जान, को सिर्फ बधाई, गुलदस्ता , कोई गिफ्ट बुके या उन्हें घुमाने फिराने ले जाने भर से और केवल एक दिवस के लिए ही नहीं होगा बल्कि हमें इस दिन संकल्प लेना है कि हमारे पिताजी अब्बा जान हमारी धरोहर हैं हमारे देवता ईश्वर अल्लाह हैं उनका सम्मान ध्यान पूजा हम उसी तरह करेंगे जैसा हमारी आस्था अपने अपने धर्म और मज़हब में है ऐसा संकल्प हमें लेना होगा।
साथियों मेरा मानना है कि देवी देवता ईश्वर अल्लाह हमारी आस्था के प्रतीक हैं। हमारी आध्यात्मिकता की धरोहर हैं उनका सम्मान पूजा-पाठ भी जीवन में जरूर है, परंतु उससे पहले हमें अपने माता-पिता का ध्यान रखना होगा उनका मान सम्मान पूजा करनी होगी बाकी सब बाद में!! क्योंकि हमने हमारे ही श्लोकों में पाए हैं कि इनमें ही हमारे सभी लोकों के देवता निवास करते हैं तो फिर हम कहीं और क्यों अपना ध्यान बांटे?
साथियों बात अगर हम हमारे पिताजी की दैनिक जीवन में भूमिका की करें तो, कहते है कि दुनिया में मां और बच्चे का रिश्ता सबसे बड़ा होता है। मां बच्चे को जन्म देती है, उसे बड़ा करती है। लेकिन एक पिता बच्चे को सभ्य बनाने के साथ ही उसके भविष्य को संवारने में अहम भूमिका निभाता है। बच्चे के जीवन में पिता का रोल मां जितना ही है। पिता त्याग और समर्पण का उदाहरण है।
एक पिता ही बच्चे को समाज की हर बुराई से बचाता है। पिता बच्चों की जरूरतों को पूरा करने के लिए खुद संघर्ष करते हैं। उनके भविष्य को संवारने के लिए दिशा निर्देशन करते हैं। मां तो मातृत्व न्योछावर कर देती है लेकिन बच्चे को सही मार्ग दिखाने के लिए पिता को कठोर बनना पड़ता है। पिता अक्सर बच्चे के प्रति उस तरह का प्यार जता नहीं पाते, जैसे मां जताती हैं लेकिन बिना दिखाए या जताए जीवन भर की खुशियां बच्चे को देने का काम एक पिता ही कर सकता है। पिता के इसी प्रेम, त्याग को सम्मान देने के लिए दुनिया के तमाम देशों में फादर्स डे मनाया जाता है।
साथियों जीवन में पिता का होना बहुत जरूरी होता है, पिता से ही बच्चों की पहचान है। उनका प्रेम अनमोल होता है, माता पिता के आशीर्वाद से दुनिया की बड़ी से बड़ी कामयाबी हासिल की जा सकती है। कोई भी समस्या हो उसका समाधान पिता के पास होता है, बच्चों को पिता की महत्ता का पता जब वे खुद माता पिता बनते हैं, तो और अधिक होता है।
अतः अगर हम उपरोक्त प्रकरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि भारतीय संस्कृति में पिता का अतुलनीय स्थान और गाथा।ग्रंथों महापुराणों में श्लोकों में पिता का ऐसा बखान हमारी संस्कृति का हिस्सा है।बच्चों के बड़े होने पर पिता के प्रति बदलता व्यवहार चिंतनीय विषय है
— किशन सनमुखदास भावनानी

*किशन भावनानी

कर विशेषज्ञ एड., गोंदिया