गीत “किसमें कितना खोट भरा”
गीत “किसमें कितना खोट भरा”
(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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हर पत्थर हीरा बन जाता,
जब किस्मत नायाब हो,
मोती-माणिक पत्थर लगता,
उतर गई जब आब हो,
इम्तिहान में पास हुआ वो,
तप कर जिसका तन निखरा।
बिन परखे क्या पता चलेगा,
किसमें कितना खोट भरा।।
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नंगे हैं अपने हमाम में,
नागर हों या बनचारी,
कपड़े ढकते ऐब सभी के,
चाहे नर हों या नारी,
पोल-ढोल की खुल जाती तो,
आता साफ नज़र चेहरा।
बिन परखे क्या पता चलेगा,
किसमें कितना खोट भरा।।
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गर्मी की ऋतु में सूखी थी,
पेड़ों-पौधों की डाली,
बारिश के मौसम में,
छा जाती झाड़ी में हरियाली,
पानी भरा हुआ गड्ढा भी,
लगता सागर सा गहरा।
बिन परखे क्या पता चलेगा,
किसमें कितना खोट भरा।।
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