जनसंख्या बनाम घुनसंख्या
हमारे देश में बच्चे पैदा करना संवैधानिक के साथ धार्भिक और सांप्रदायिक अधिकार है। भला है कि विधाता ने मनुष्य को एक बार में एक ही बच्चा पैदा करने की क्षमता दी है। कहीं – कहीं अपवाद स्वरूप जुड़वा या उससे अधिक बच्चे भी पैदा होते देखे गये हैं। ऐसे लोग भगवान की कृपा मानकर प्रसाद स्वरूप उन्हें ग्रहण कर लेते हैं। फिर भले ही वह कड़वा लगे। कही – कहीं यह कुटीर उद्योग इतना फलता -फूलता है कि वार्षिक उत्पादन होता है। इनकी ईश्वर पर अटूट श्रद्धा होती है। ये लोग भगवान भरोसे बच्चे पैदा करते हैं और सरकार भरोसे पालते हैं।
आजादी के बाद यह ‘कुटीर उद्योग’ , ‘बृहत उद्योग’ बन गया। समाजशास्त्रियों और अर्थशास्त्रियों ने इसे जनसंख्या-विस्फोट कहा है। मैं ‘बम विस्फोटों’ के देश में पैदा हुआ हूँ। मेरा विद्यार्थी जीवन देश में होनेवाले इस प्रकार के साप्ताहिक विस्फोटों में पुष्पित-पल्लवित होता रहा। मैंने विस्फोटों में जनसंख्या घटते देखी। विस्फोट में भी विस्तार!! इट्स हेपन ओनली इन इंडिया। इस मामले में हमने प्रधानमंत्री जी के ‘सबका साथ सबका विकास’ वाले नारे को हमने बड़ी जल्दी आत्मसात कर लिया। अब हम बच्चे पैदा करने में नंबर वन हो चुके हैं। हम दो हमारे दो के चक्कर में देश में ‘महापुरुष’ पैदा होना बंद हो गये थे। राजनैतिक दल मूर्दे उखाड़-उखाड़कर महापुरुष घोषित करने की होड़ में लगे हैं। एक पुरुष देश के बाहर जाकर छाती पीट – पीट कर महापुरुष बनने की दिशा में हैं तो एक पुरुष को, डिंडोरा पीट -पीटकर महापुरुष के सिंहासन पर राज्याभिषेक करने की तैयारी हो रही है। अब देश में महापुरुषों की फसल लहलहाने वाली है। हम नंबर वन जो हो चुके हैं। संसार में हमारी साख कितनी बढ़ जायेगी ना। जब विदेशों के महापुरुषों पर भी लिखा होगा – “मेड इन इंडिया।’ आनेवाली सरकार चाहें तो महापुरुषों का निर्यात कर मोटी कमाई कर सकती है। हमारा समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र दोनों चमकने का स्वर्ण – युग आ रहा है। बधाई हो!
जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए कानून बनाने की माँग हो रही है। बच्चे कानून से पैदा नहीं होते। चार पुरुषार्थों में एक ‘काम’ की शरण में जाना पड़ता है साहब। अपना पराक्रम सिद्ध करना पड़ता है। दिन – रात की पसीना बहाऊ मेहनत के बाद आँगन गुल – ए – गुलज़ार होता है। आप ठहरे अकर्मण्य जंतु! जब खुदा दे रहा है तो आपके पेट में काहे दर्द हो रहा है। भारतवर्ष धर्म निरपेक्ष और प्रजातांत्रिक है कि नहीं? आप हमारे पैदा होनेवाले बच्चों का गला घोंट कर क्यों इन दो महान संवैधानिक मूल्यों को नष्ट करना चाहते हो? हत्यारे कहीं के। यदि आवारा घूमेगी तो हमारी औलाद घूमेगी। बेरोजगारी की हमें चिंता नहीं। हमारे वाले तो पंचर बनाकर और मेकेनिक बनकर भी देश की तरक्की में योगदान दे देते हैं। आपको लालच है इंजीनियर – डॉक्टर, कलेक्टर – सेक्रेटरी बनाने का तो आप बनाइए। हमारे फटे में काहे अपनी टाँग घूसेड़ रहे हैं जनाब! कल को जब हमारे खानदान का चिराग देश की पंचायत में मूछों पर ताव देता हुआ नेता जी के आशीर्वाद से जायेगा ना तो आपके यही पढ़े- लिखे डॉक्टर-इंजीनिअर-कलेक्टर-सचिव उसके आगे पानी भरेंगे। देख लेना जलनखोर कहीं के! कमबख्त!!
अरे! क्या माता जी चिल्ला रही हैं। महीने भर पहले खरीदे गेंहूँ में घुन जो लग गये हैं। सारा गेंहूँ सत्यानाश हो गया। देश में भी जनसंख्या नहीं बढ़ रही। ‘घुनसंख्या’ बढ़ रही है। देश को घुनतंत्र नहीं, जनतंत्र की ज़रूरत है। देश को घुनों से बचाइए।इन घुनों को रोकना बहुत ज़रूरी है। वरना पूरा देश खोखला कर जायेंगे। तब ईश्वर- भगवान-खुदा- परमात्मा-गॉड की ये देन कोई काम की नहीं रहेगी।
— शरद सुनेरी