माहौल
अपने होठों पे, तबस्सुम को, सजाए रखिए।
शब गुज़रने तलक़, अश्कों को छुपाये रखिये।
दौर ए ग़म में नहीं,चलता कोई किसी के लिए,
हौसला टूटे न, माहौल बनाए रखिये।
धूप ख़िल जाएगी, राहों में तबस्सुम से तेरे,
दिल के अंगारों को, अश्कों से बुझाए रखिए,
है सफ़र मुश्किल, राहें भी हैं तारिक़ तनहां,
साथ रहवर की, रोशनी को, जलाए रखिए।
दो क़दम और मंज़िलें हैं, मुख़्तसर तेरे,
उनके दीदार की, उम्मीद जगाए रख़िये।
— पुष्पा “स्वाती”