वन आर्थिकी को सशक्त करने के लिए सुदूर गांवो तक पहुंचा रहे बाजार की खबर समाचार पत्रों में पढ़ने को आई थी| महिलाओं के जीवन में समृद्धि लाने के वनोपज एकत्र करने के बाद उत्पाद बनाकर बेचने का कार्य वन के समीप बसे समुदाय के लिए वनोपज आजीविका का साधन एवं नारी सशक्तिकरण को एक नई दिशा देगा | कुछ दिनों पूर्व आनलाइन मिलेंगे आदिवासी महिलाओं के बनाए उत्पाद की खबर भी पढ़ने को आई थी ।आदिवासी महिलाओं द्धारा बनाए गए उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने के लिए श्योपुर ने आनलाइन शापिंग वेबसाइट्स में अस्सी से अधिक उत्पादकों को आगे लाया गया।दूसरी ओर छत्तीसगढ़ में महिलाएं मजदूरी के अलावा घरेलू नुस्खों से ही औषधि बनाने के लिए जंगलों की जड़ी बूटियों से कारोबार कर अपनी आय में बढ़ोतरी कर रही है।महिला समूह की इकाई का कार्य प्रशंसनीय है।उल्लेखनीय है कि तोरणमाल (महाराष्ट्र) में भी महिलाएं जड़ी बूटियों को ढूंढ कर कारोबार करती आरही है।आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों अपने पूर्वजों के ज्ञान से पीढ़ी दर पीढ़ी जड़ी बूटियों की पहचान कर छोटी मोटी बीमारियों का इलाज जड़ी बूटियों की औषधि बनाकर करते आए है।आयुर्वेदिक दवाइयों में इनके उपयोग किए नुस्खों का रूप को देखने को मिलता है।ये इंसान के अलावा पशु पक्षियों का भी जड़ी बूटियों से इलाज करते आ रहे है।यदि ये भी छत्तीसगढ़ की तरह कारोबार में प्रतिभागी बने।तो जड़ी बूटियों के कारोबार को विस्तृत रूप मिलेगा ही साथ ही जंगल की जड़ीबूटिया भी विलुप्त होने से बच सकेगी।आइ एस बी के एसोसिएट प्रोफेसर का मत है कि वन आर्थिक सुधारने को जरुरी है कि ग्रामीण समुदाय वनों के मालिक बने | ऐप बनकर मोबाइल पर उपलब्ध किया जा रहा है | महिलाओं को प्रशिक्षण,मार्केटिंग , सरकार से ऋण दिलवाकर जंगल से रोजगार उपलब्धि का लक्ष्य है | जिससे वनोपज की बड़ी कंपनियों से सही कीमत प्राप्त हो सकें|इन उपलब्धियों को देखते हुए जड़ी -बूटियों का संरक्षण किया जाना होगा | एक जानकारी के मुताबिक उधर इस परिप्रेक्ष्य में ये खबर भी पढ़ने को आई कि ” संरक्षण की बाट जोह रहा है जनजातीय चिकित्सा पद्धति की जड़ी- बूटियों का संसार”झारखंड के रामगढ़ जिले के मुंडा आदिवासी वैध भी है | वे जड़ी बूटियों से तरह-तरह की बीमारियों को ठीक करते है | उन्हें यह ज्ञान अपने पूर्वजो से प्राप्त है |उनका मानना है की हमें सार्टिफिकेट मिलना चाहिए | नेशनल आयुष मिशन कानवलेव झारखंड में यह पहल गई कि प्रदेश में औषधीय पौधो की भरमार है ,लेकिन शोध की व्यवस्था न होने से मरीजों के इलाज में इनका उपयोग नहीं हो पा रहा है| उनकी मांग है की राज्य में एक अनुसंधान केंद्र स्थापित हो जाए तो हमे ज्ञान की परंपरा को पंख लग सकते है | और परंपरा को एक वैज्ञानिक स्वरुप मिल सकेगा | पीरामल फाउंडेशन इस दिशा में काम कर रहा है | फाउंडेशन का मत है कि पुरानी पीढ़ी के समृद्ध ज्ञान का यदि उपयोग किया तो जनजातीय चिकित्सा पद्धति धीरे -धीरे लुप्त हो जाएगी | फाउंडेशन हर्बल गार्डन की योजना भी बना रहा है ताकि युवा पीढ़ी में जड़ी- बूटियों के प्रति रूचि बढे |इस तरह की पहल हर राज्य में होनी चाहिए ताकि जड़ी -बूटियों का संसार लुप्त होने से बच सके |
— संजय वर्मा “दृष्टि “